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उन्तालीसवाँ व्याख्यान धर्म के प्रकार
महानुभावो !
धर्म का विषय चल रहा है और तत्सम्बन्धी विचारणा में हम एक क्रम से आगे बढ रहे हैं। धर्म की आवश्यकता पर विचार किया गया; धर्म की शक्ति का परिचय प्राप्त किया; धर्म की व्याख्या नानी और उसके लक्षणो से परिचित हुए; और यह स्पष्ट किया गया कि, धर्म का आराधन कत्र और कैसे करना । लेकिन, अभी उसके सम्बन्ध मे कितने ही महत्त्वपूर्ण मुद्दे बाकी हैं ।
आपने आत्मा-सम्बंधी व्याख्यान सुने, कर्म-सम्बंधी व्याख्यान सुने और अत्र धर्म-सम्बंधी बातें चल रही हैं। कुछ लोग कहते हैं कि, "जितना नहाये उतना पुण्य | अन्तिम कुछ व्याख्यान न सुने तो क्या हुआ ?" - लेकिन, आधा सुनना आधा न सुनना उचित नहीं है । अन्तिम व्याख्यानों में विषय का सार होता है । इसलिए, उन्हे तो सुनना ही चाहिए ।
आप दही बिलोना शुरू करें और बीच में ही छोड़ दें तो क्या मक्खन निकलेगा ? या बम्बई से अहमदाबाद जाना हो और बीच में सूरत, भड़ौच या बड़ौदा उतर पड़ें तो क्या आप अहमदाबाद पहुँच गये ? नीतिविशारदों ने 'श्रव्यस्यान्तगमनं' शुरू करें उसके अन्त तक जायें - यह उत्तम नीति बतलायी है । सब सत्पुरुष इसी नीति का अनुसरण करते है, आप भी करें ।
दुनिया में बहुत-से धर्म प्रचलित हैं । उनमें जैन-धर्म अति प्राचीन है, वैदिक-धर्म प्राचीन है, बौद्ध, ख्रिस्ती और इस्लाम धर्म तो पच्चीस सौ से