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सम्यक् ज्ञान
६८३ वर्ष पहले बहुत कम उपधान होते थे, कारण कि उस समय साधुओं की सख्या कम थी, इसलिए उनका प्रचार कम था। हाल में साधुओ की सख्या बढ़ी है और उनके द्वारा उपधान का माहात्म्य बहुत से लोग समझने लगे हैं। इसलिए हर वर्ष विभिन्न शहरो में उपधान तप कराया जाता है । इससे अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। पहला यह कि, उससे जिनेश्वर-देव की आजा का पालन होता है। दूसरा यह कि, आड़े दिन उपवास, आयबिल, एकासन आदि की तपश्चर्या एकधारी नहीं हो सकती; परन्तु उपधान किया जाये तो २१ उपवास, ८ आयंबिल और १८ एकासन की तपश्चर्या एकधारी हो सकती है, जोकि कर्म की महानिर्जरा करनेवाली है। तीसरा लाभ यह है कि, उपधान में रोज पोसह होने के कारण मुनिजीवन की तुलना होती है । चौथा लाभ यह है कि, उससे काया की माया घटती है और उससे भविष्य की अनेक प्रकार की पाप-प्रवृत्ति रुक जाती है । पाँचवाँ लाभ यह है कि, उससे इन्द्रियों का रोध करने की शिक्षा मिलती है । छठा लाभ यह है कि, धर्माराधन की अभिलाषा से एकत्र हुए व्यक्तियों का सत्सग होता है और उससे धर्मभावना की वृद्धि होती है। दूसरे भी बहुत से लाभ होते हैं । इसलिए, उनके अतर्गत जो खर्च किया जाता है, वह द्रव्य का सदुपयोग है न कि धुआँ । जो धर्म-क्रिया से दूर रहते हैं और उसके विविध लाभों से अनजान हैं, वे ही इस तरह का प्रश्न करते हैं और कुछ लोगों की धर्मश्रद्धा को हिला देते हैं। अगर वे वस्तुस्थिति की गहराई में उतरे और स्वयं उसका निरीक्षण करें तो उन्हें मालूम हो जायेगा कि, उपधान-तप धर्मभावना की वृद्धि करनेवाला एक सुन्दर अनुष्ठान है ! उपधान- तप करने के बाद अनेक प्रकार के व्रतनियम लिये जाते हैं और उनसे भी जीवन पर बड़ा अच्छा असर होता है। ___जिनकी बुद्धि मन्द है अथवा जिनका चित्त शास्त्र के पठन-पाठन मे जल्दी एकाग्र नहीं हो सकता, वे उपधान करें तो उनकी बुद्धि की जड़ता