Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

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Page 779
________________ सम्यक ज्ञान ६८१ जानी का विनय आठ प्रकार से करना चाहिए (१) उपधान आदि विधि द्वारा सूत्र और अर्थ ग्रहण करना तथा अव्ययन करना। उपधान के विषय में विशेष विवेचन आगे करेंगे। (२) विधि अनुसार दूसरे को सूत्र और अर्थ देना तथा उसमे रहे हुए अर्थ की भलीभाँति भावना करना । (३) शास्त्र के अनुसार अच्छी तरह अनुष्ठान करना । (४) स्वय पुस्तकें लिखना । (५) दूसरों से पुस्तकें लिखाना । (६) पुस्तकों का शोधन करना अर्थात् उनकी भूते सुधारना । (७) वासक्षेप, कर्पूर आदि सुगंधित वस्तुओं द्वारा जान की पूना करना। (८) जानपचमी आदि की तपस्या करना और उसके अन्त मे शक्ति के अनुसार उद्यापन करना । __नानोपकरण का विनय दो प्रकार से करना चाहिए-एक तो ज्ञानोपकर्ण यथासमव अच्छा इकट्ठा करना, और दूसरा उसके प्रति आदर रखना। जान देनेवाले गुरु, ज्ञानी आदि के प्रति विनय की तरह बहुमान दर्शाना, यह ज्ञानाचार का तीसरा प्रकार है। यहाँ बहुमान से अन्तर का सद्भाव या भारी आदर समझना चाहिए। बाहरी विनय हो पर अन्तर का बहुमान न हो, तो भी ज्ञान प्राप्ति में प्रगति नहीं की जा सकती, इसीलिए शास्त्रकारों ने बहुमान को ज्ञानाचार का एक खास प्रकार माना है। शास्त्रों में विनय और बहुमान की चतुर्भेगी बतायी है, वह भी ध्यान मे रखने योग्य है (१) विनय हो, पर बहुमान न हो। (२) विनय न हो, पर बहुमान हो ।

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