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पैंतालीसवाँ व्याख्यान सम्यक्-चारित्र
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महानुभावो!
धर्म का व्याख्यान-प्रवाह आगे बहता-बहता रत्नत्रयी तक आ पहुंचा है और वह सम्यग्दर्शन और सम्यक्ज्ञान पर तो विचार चुका है। आज वह सम्यकचारित्र विचार होनेवाला है। इसे एक मंगल अवसर समझकर तन्मयतापूर्वक उसे सुनें ।
चारित्र की महिमा । कुछ लोग यह मानते हैं कि विद्वान और शास्त्रज्ञ होने से महानता आ जाती है। परन्तु, मनुष्य को सचमुच महान बनानेवाला चारित्र है। यहाँ चारित्र से सम्यक्-चारित्र समझना चाहिए । आज तक जगत् में नो महापुरुष हुए हैं; वे सम्यक्-चारित्र की बदौलत ही महान् हुए हैं। सम्यकचारित्र के विषय में जैन-शास्त्रकारों ने जो वचन कहे हैं, वे बारबार मनन करने योग्य हैं । सुनिये उन्हे
'बहुश्रुत हो परन्तु चारित्र-रहित हो, तो उसे अज्ञानी ही जानना, कारण कि, उसके ज्ञान का फल शून्य है। अधे के सामने लाखों दीपक जलाने से भी क्या लाभ ? नेत्रवाले के लिए एक ही दीपक काफी है, उसी प्रकार चारित्रवान् के लिए स्वल्प ज्ञान भी प्रकाशक होता है !'
"जैसे चन्दन का भार वहन करनेवाला गधा उसके भार का ही भागी होता है, न कि उसकी सुगध का; उसी प्रकार चारित्ररहित ज्ञानी पठन