Book Title: Atmatattva Vichar
Author(s): Lakshmansuri
Publisher: Atma Kamal Labdhisuri Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 738
________________ ६४२ आत्मतत्व-विचार सक्षेप-रुचि है। चिलातीपुत्र महात्मा उपशम, विवेक और संवर इन तीन __ पदों को सुनकर ही तत्त्व में रुचि लेने लगे थे। (१०) धर्म-रुचि-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकार आदि पदार्थों का निरूपण करनेवाले जिन-वचनों को सुनकर श्रुत-चारित्र-रूप धर्म पर __ श्रद्वा होना धर्मरुचि है। सम्यक्त्व के सड़सठ बोल व्यवहार-सम्यक्त्व का पालन करने के लिए सड़सठ भेदों का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है; इसलिए उसका यहाँ विवेचन करेंगे। श्री प्रवचनसारोद्धार में उन भेदों को दर्शानेवाली दो गाथाएँ दी हैं चउसद्दहण-तिलिंगं, दसविणय-तिसुद्धि पंचगयदोस। अट्ठपभावण-भूसण-लक्खण-पंचविहसंजुत्तं ॥॥ छविह जयणागारं, छब्भावणभाविअं च छट्ठाणं । इय सत्तसट्टि लक्षण भेयविसुद्धं च सम्मत्तः॥२॥ -चार सद्दहना, तीन लिंग, दस विनय, तीन शुद्धि, पाँच दूषण का त्याग, आठ प्रभावक, पाँच भूषण, पाँच लक्षण, ६ जयना; ६ आगार, ६ भावना और ६ स्थान-इन सड़सठ, भेदों से युक्त सम्यक्त्व शुद्ध होता है। चार सहना सद्दहना का अर्थ है-श्रद्धा ! उसके विषय में शास्त्रकारो ने चार बोल कहे हैं—(१) परमार्थसंस्तव, (२) परमार्थज्ञातृसेवन, (३) व्यापन्नवर्जन और (४) कुदृष्टिवर्जन । ये चार बोल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिए पहले इनकी विचारणा की जाती है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819