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आत्मतत्व-विचार
सक्षेप-रुचि है। चिलातीपुत्र महात्मा उपशम, विवेक और संवर इन तीन __ पदों को सुनकर ही तत्त्व में रुचि लेने लगे थे।
(१०) धर्म-रुचि-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकार आदि पदार्थों का निरूपण करनेवाले जिन-वचनों को सुनकर श्रुत-चारित्र-रूप धर्म पर __ श्रद्वा होना धर्मरुचि है।
सम्यक्त्व के सड़सठ बोल व्यवहार-सम्यक्त्व का पालन करने के लिए सड़सठ भेदों का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है; इसलिए उसका यहाँ विवेचन करेंगे। श्री प्रवचनसारोद्धार में उन भेदों को दर्शानेवाली दो गाथाएँ दी हैं
चउसद्दहण-तिलिंगं, दसविणय-तिसुद्धि पंचगयदोस। अट्ठपभावण-भूसण-लक्खण-पंचविहसंजुत्तं ॥॥ छविह जयणागारं, छब्भावणभाविअं च छट्ठाणं । इय सत्तसट्टि लक्षण भेयविसुद्धं च सम्मत्तः॥२॥
-चार सद्दहना, तीन लिंग, दस विनय, तीन शुद्धि, पाँच दूषण का त्याग, आठ प्रभावक, पाँच भूषण, पाँच लक्षण, ६ जयना; ६ आगार, ६ भावना और ६ स्थान-इन सड़सठ, भेदों से युक्त सम्यक्त्व शुद्ध होता है।
चार सहना सद्दहना का अर्थ है-श्रद्धा ! उसके विषय में शास्त्रकारो ने चार बोल कहे हैं—(१) परमार्थसंस्तव, (२) परमार्थज्ञातृसेवन, (३) व्यापन्नवर्जन और (४) कुदृष्टिवर्जन ।
ये चार बोल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिए पहले इनकी विचारणा की जाती है।