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( १ ) जीव है । ( २ ) वह नित्य है |
आत्मतत्व-विचार
(३) वह शुभाशुभ कर्म का कर्ता है । ( ४ ) वह शुभाशुभ कर्मफल का भोक्ता है । ( ५ ) वह सत्र कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर सकता है । (६) मोक्ष का उपाय सुधर्म है ।
आत्मा और कर्म विषयक व्याख्यानमाला मे इन ६ सिद्धान्तों के विषय में काफी विवेचन किया है । यहाँ उसकी पुनरुक्ति नहीं करते ।
इस प्रकार सम्यक्त्व के सड़सठ भेदों का वर्णन यहाँ पूरा होता है । उन्हें भलीभाँति समझकर चलनेवाला शुद्ध समृकिती वन जा सकता है और इस दुःखपूर्ण ससार का पार पाया जा सकता है ।
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विशेष अवसर पर कहा जायेगा ।