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लम्यक् ज्ञान
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एक हाथ में तलवार और एक हाथ मे दाल दी । इस ढाल का एक बाजू सोने का और दूसरी चाँदी की रखा गया।
एक बार दो प्रवासी आमने-सामने की तरफ से वहाँ आ पहुँचे और उस पुतले को देखकर अपना-अपना अभिप्राय प्रकट करने लगे । एक ने कहा - " परोपकार के लिए प्राण दे देना बहुत बड़ी बात मैं इस परोपकारी वीर को धन्यवाद देता हूँ ।"
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दूसरे ने कहा - " इस दुनिया में वीरता की कद्र करनेवाले बहुत बोड़े होते हैं। परन्तु इस गाँव के लोगों ने वीरता की कद्र करके वीर पुरुष का पुतला खड़ा किया । इसलिए मैं उनका अभिनन्दन करता हूँ ।"
पहले ने कहा - " यह पुतला बहुत सुन्दर है !"
दूसरे ने कहा - " पुतले से ज्यादा सुन्दर तो उसके हाथ की ढाल और तलवार है । उनमे भी यह सोने से मढी हुई ढाल तो बहुत ही सुन्दर है !"
पहले ने कहा - " ए ! जरा समझकर बोल ! यह ढाल सोने से नहीं, चाँटी से मढी हुई है ।"
दूसरे ने कहा- "मेरी आँखें मुझे यथार्थ दिखलाती हैं और मै जो देखता हूँ वही कहता हूँ । पर, जिसकी आँखें बराबर काम न देती हों, वह चाहे जो कुछ बोले ।"
तुरन्त पहला तड़का - " अरे मूर्ख ! तू मुझे श्रन्धा कहता है ! यह ढाल चाँदी से ही मढ़ी हुई है । उसे सोने से मढ़ी हुई कहना बेवकूफी की हद है !"
इस तरह विवाद करते हुए दोनों बाँहें चढा कर एक दूसरे के मुकाबले पर आ गये । इतने में गाँव के कुछ समझदार आदमी यहाँ भा पहुॅचे। उन्होंने कहा - " ओ भले मुसाफिरों ! तुम क्यों लड़ते हो ?" पहले ने कहा- "यह, बेवकूफ यह कहता है कि, यह ढाल सोने से मढ़ी
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