________________
६७६
श्रात्मतत्व-विचार
शिक्षण के प्रति उदासीनता दशा रहे है। आप व्यावहारिक शिक्षग पर जितना खर्च करते हैं, क्या उतना धार्मिक-शिक्षण पर करते हैं ? अरे । नजदीक में पाठशाला हो और मुफ्त शिक्षण दिया जाता हो, तो भी आप अपने बालकों को उस पाठशाला में पढ़ने के लिए नहीं भेजते । धार्मिक शिक्षण के प्रति आपकी यह उपेक्षा आपको कहाँ घसीट ले जायेगी; क्या इसका आपको भान है ?
कुछ लोग कहते है कि, 'लड़का हाथ से गया। अब वह किसी का कहा नहीं मानता, मवालियों के साथ घूमता है और अनकरनी करता है।' परन्तु, उसे पहले से ही धार्मिक संस्कार, धार्मिक ज्ञान दिया होता और विनय-विवेक का पाठ पढ़ाया होता, तो क्या यह दधा होती ? आप अपने लडकों के प्रति स्नेह दर्शाकर उन्हे अपनी विरासत देने वाले हैं। पर अगर वे अज्ञानी, उद्धत, उच्छृखल होगे, अच्छे संस्कारो से रहित होंगे, धर्मभावना शून्य होंगे, तो वह विरासत कितने रोज टिकेगी? और, उसका परिणाम क्या होगा? उसका विचार कीजिये। इसलिए, अपने बालको को अभी से ऐसा जान दीजिये कि, अच्छे संस्कार पडें और वे धारणानुसार प्रगति कर सकें। ___आचार्य और उपाध्याय का पद बड़ा है; पर उन्हें स्थविर तो तभी कहा जाता है, जबकि वे ज्ञान में निरन्तर वृद्धि करते-करते जानवृद्ध बनें और गीतार्थ बनें।
उक्त अन-महर्षि जान की महिमा दर्शाते हुए विशेष कहते हैं किबानी श्वासोच्छवास मां रे, कठिन कर्म करे नाश । वति जेम ईंधण दहेरे, क्षणमां ज्योति प्रकाश ॥ भवियण चित्त धरो, मन०
कर्म किसे कहते है ? उसमे कितनी शक्ति होती है ? उसका बध क्तिने प्रकार से होता है ? वह कब कैसे उदय में आता है ? उसकी निर्जरा