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आत्मतत्व-विचार
वे वेश्या के यहाँ रह गये । निमित्त को शास्त्रकारों ने इसीलिए बलवान कहा है । वह कत्र कैसा परिणाम लायेगा, कहा नहीं जा सकता।
नंदिप्रेण मुनि वेश्या के यहाँ रह तो गये; पर उस समय यह नियम किया कि, 'प्रतिदिन दस आदमियों को धर्म दिलाकर ही भोजन करूँगा' वे इस नियम का पालन करते हुए रहने लगे। यहाँ विचारणीय यह है कि, वेश्या के यहाँ आनेवाले अधिकाश लोग दुराचारी होते थे, फिर भी वे उन्हें वीतराग-कथित शुद्ध धर्म प्राप्त कराते थे और चारित्र लेने भेजते थे ! उनकी धर्म शक्ति कितनी बड़ी होगी!
यह क्रम बारह वर्षों तक चला। एक दिन नौ आदमियो को तो प्रतिबोध करा दिया गया; पर दसवाँ आदमी प्रतिबोध नहीं पा रहा था। नदिषेण ने उसे समझाने के लिए पूरा प्रयत्न किया; परन्तु व्यर्थ ! इतने में वेश्या ने आकर कहा-'हे स्वामी ! अब तो भोजन-बेला बीती जा रही है । चलिए । भोजन कर लीजिए, आज दसवॉ आदमी प्रतिबोध पाता नहीं दोखता।"
नदिप्रेण ने कहा-"उसके बिना भोजन नहीं किया जा सकता", ये शब्द सुनकर वेश्या हॅसती हुई बोली-"दसवें तो आप स्वय ही प्रतिबोध भले पावें !" . __उसी समय नदिषेण की मोहनिद्रा टूट गयी। उन्होंने पास में रखे हुए अपने साधु के कपड़े और उपकरण सँभाले । हँसी मे खसी देखकर वेश्या अनुनय-विनय करने लगी, पर नदिघेण डिगे नहीं । फिर, वे श्री महावीर प्रभु के पास आये और योग्य प्रायश्चित ग्रहण करके, सयम की साधना द्वारा आत्मकल्याण किया।
जो महात्मा प्रमाण, युक्ति और सिद्धान्त के बल से परवादियों के साथ वाद करके उनके एकान्त मत का उच्छेद कर सकें; वे वादी-प्रभावक हैंजैसे कि श्री मल्लवादि सूरि ! उन्होंने द्वादशारनयचक्र आदि न्याय के