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सम्यक्त्व
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श्री गौतमस्वामी पूछते हैं- "हे भगवन् ! गुरु को वन्दन करने से जीव को क्या फल मिलता है ?" भगवान् उत्तर देते हैं- "हे गौतम ! गुरु को वन्दन करने से जीव आठ कर्मों की प्रकृतियों के गाढ बन्धन को शिथिल बना देता है, कमों की दीर्घकालीन स्थिति को अल्प करता है; आठों कमों के तीव्र अनुभाव को मन्द करता है; बहुप्रदेशी आठों कर्मों को अल्पप्रदेशी करता है; इससे वह अनादि अनन्त संसार में परिभ्रमण नहीं करता ।” गुरुवन्दन का अन्तिम फल मोक्ष है । नमस्कार मंत्र के प्रथम दो पद देव के है और बाद के तीन पद गुरु के ।
चौथा भूषण क्रिया-कुशलता है। श्री जिनेश्वर भगवतों ने आत्मशुद्धि, आत्मविकास के लिए अनेक प्रकार की क्रियाएँ बतायी है। उनमे कुशलता रखना सम्यक्त्व का चौथा भूपण है | तत्त्वबोध यथार्थ हो पर क्रिश में यदि उसका उपयोग न हो तो भला कल्याण कैसे होगा ? जिन शासन में ज्ञान और क्रिया दोनों के योग से ही मुक्ति मानी गयी है ।
पाँचवाँ भूषण तीर्थसेवन है । यहाँ तीर्थ शब्द से स्थावर और जगम दोनों प्रकार के तीर्थ समझना चाहिए । श्री शत्रुञ्जय, श्री गिरनार, श्री सम्मेत शिखर, श्री आबू आदि स्थावर तीर्थ हैं और पचमहाव्रतधारी त्यागी मुनिवर जंगम तीर्थ हैं। उनका सेवन करने से सम्यक्त्व की शोभा बढ़ती है | श्रावको को स्थावर तीर्थों की यात्रा वर्ष में एक बार तो अवश्य करनी ही चाहिए, ऐसा शास्त्रकारों का आदेश है; कारण कि उससे जीवन की चालू सरगर्मी से मुक्ति मिलती है और भावोल्लासपूर्वक निन-भक्ति हो सकती है ।
पाँच लक्षण
शास्त्रकारों ने सम्यक्त्व के पॉच लक्षण बताये हैं-शम, सवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्तिक्य । जैसे धुएँ से अग्नि के अस्तित्व का ज्ञान होता है, उसी प्रकार इन लक्षणों से सम्यक्त्व के अस्तित्व का ज्ञान होता है ।