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तेतालीसवाँ व्याख्यान
सम्यक्त्व
[३]
महानुभावो!
शास्त्रकार भगवतों ने जिमे अतुलगुणनिधान, सर्व कल्याण बोज, संसार-सागर तरने के लिए जहाज के समान, पापवृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ा और भव्यजीवो का एक लक्षण बताया है, उस सम्यक्त्व का वर्णन चल रहा है । सम्यक्त्वधारी की श्रद्धा कैसी होती है ? उसके लक्षण क्या है ? उसको किनका विनय करना चाहिए ? उसे कैसी शुद्धि रखनी चाहिए
और कैसे दोषों से बचना चाहिए ?-इसका वर्णन हो गया। उस _ विचारणा के क्रम में अब हम प्रभावकों का वर्णन करेंगे।
आठ प्रमावक प्रभावक उन महापुरुषो को कहते हैं, जो अपनी शक्ति से सम्यक्त्व के प्रभाव का विस्तार करते हैं। चूँकि निनशासन अनादि काल से चला आया है, इसलिए ऐसे प्रभावक अनन्त हो चुके हैं। वे आठ प्रकार के . होते हैं। शास्त्र में कहा है कि
पावयणी धम्मकही, वाई नेमित्तियो तवस्सी य । विजा-सिद्धो अ कवी, अट्ठव पभावगा भणिया ।
-प्रावचनिक, धर्मकथी, वादी, नैमित्तिक, तपस्वी, विद्यावान, सिद्ध और कवि ये आठ प्रभावक कहे गये हैं।