________________
बयालीसवाँ व्याख्यान
सम्यक्त्व [२]
महानुभावो! ___ सरोवर जैसे कमल से, रात्रि जैसे चन्द्र से, आम जैसे कोयल से और मुख जैसे नासिका से शोभा पाता है; वैसे ही धर्म-धर्माचरण सम्यक्त्व से शोभा पाते हैं। जैसे नींव के बिना भवन नहीं खडे होते, बरसात बिना खेती नहीं होती और नायक बिना सेना नहीं लड़ सकती, वैसे ही सम्यक्त्व विना धर्म का आचरण यथार्थ रूप से नहीं हो सकता।
सम्यक्त्वरहित ज्ञान या सम्यक्त्वरहित चारित्र मोक्ष नहीं दिला सक्ता। गुणस्थान की चर्चा में हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि, जब आत्मा सम्यक्त्व से विभूषित होता है तभी वह देशविरति, सर्वविरति आदि आगे की भूमिकाओं को स्पर्श करके अपना विकास साध सकती है।
यह बात ठीक है कि, आप सम्यक्त्व का अर्थ जानते हैं । इस सम्बन्ध में कितनी ही चार विचारणा हो चुकी है। पर, रात्रि-दिवस की साठ घड़ी में अपने धर्माराधन के लिए कितना समय रखा है। बराबर हिसाब करके कहें ? पर, भाग्यशाली यदि धर्म-सम्बन्धी विचारणा ही नहीं करेंगे, तो आप सम्यक्त्व का अर्थ किस प्रकार जानेंगे?
सम्यक्त्व का अर्थ सम्यक् पद में 'स्व' प्रत्यय लगाने से सम्यक्त्व शब्द बनता है।