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धर्म के प्रकार
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वडी प्रशंसा करने लगा और उसे शाति दिलाने के लिए जिनदास-नामक एक श्रावक को उसकी देख-भाल के लिए रखा। जिनदास ने बंकचूल से कहा-“हे भाई! यह जीव अकेला आता है और अकेला जाता है। मालमिल्कियत, सगे-सम्बन्धी और यार टोस्त सब मोहजाल है, इसलिए उनमें मन न लगाओ। सच्ची शरण परमेष्ठी की है। उनको भावसहित नमस्कार करने से सद्गति प्राप्त होती है, इसलिए मैं तुम्हे परमेष्ठी का नमस्कारमत्र सुनाता हूँ, उसे शाति से सुनो।" जिनदास मत्र का एक-एक पद बोलता गया और बंकचूल नमस्कार करता गया। इस प्रकार अतिम समय नमस्कारमंत्र पाकर वह मरकर बाहरवे स्वर्ग में देव हुआ !
लिये हुए नियमों का पालन करने से कितना लाभ होता है यह देखिये !
कहने का मतलब यह है कि, धर्म प्राप्त कराने के लिए महापुरुष जो कोई नियम देते हैं, क्रिया बताते हैं, या अनुष्ठान बतलाते हैं, वे सब धर्म के प्रकार हैं, इसलिए उनकी गिनती नहीं की जा सकती । परन्तु, उन सब प्रकारों में मुख्य लक्ष्य आत्मा का कल्याण करना होता है।
जो आत्मा को ऊँचा ले जाकर उसका उद्धार करे, सो धर्म । विशेष अवसर पर कहा जायगा।
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