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धर्म के प्रकार
६०६ बड़ी प्रशंसा करने लगा और उसे शाति दिलाने के लिए जिनदास-नामक एक श्रावक को उसकी देख-भाल के लिए रखा । जिनदास ने बंकचूल से कहा- "हे भाई ! यह जीव अकेला आता है और अकेला जाता है। मालमिल्कियत, सगे-सम्बन्धी और यार-दोस्त सब मोहजाल है; इसलिए उनमें मन न लगाओ। सच्ची गरण परमेष्ठी की है । उनको भावसहित नमस्कार करने से सद्गति प्राप्त होती है, इसलिए मैं तुम्हे परमेष्ठी का नमस्कारमत्र सुनाता हूँ, उसे गाति से सुनो।" जिनदास मंत्र का एक-एक पद बोलता गया और बकचूल नमस्कार करता गया। इस प्रकार अतिम समय नमस्कारमंत्र पाकर वह मरकर बाहरवें स्वर्ग में देव हुआ।
लिये हुए नियमों का पालन करने से कितना लाभ होता है यह देखिये !
कहने का मतलब यह है कि, धर्म प्राप्त कराने के लिए महापुरुष जो कोई नियम देते हैं, क्रिया बताते हैं, या अनुष्ठान बतलाते हैं, वे सब धर्म के प्रकार हैं, इसलिए उनकी गिनती नहीं की जा सकती। परन्तु, उन सब प्रकारों में मुख्य लक्ष्य आत्मा का कल्याण करना होता है।
जो आत्मा को ऊँचा ले जाकर उसका उद्धार करे, सो धर्म । विशेष अवसर पर कहा जायगा।