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आत्मतत्व-विचार
को उसका पान कराकर उनकी तलब बुझायी जाती है । फिर तो वेश्यागिरी को भी धर्म में ले जानी पड़ेगी। तात्पर्य यह कि, धर्म करने के लिए पाप करने की छूट नहीं है । पाप तो पाप ही है, इसलिए उसका त्याग अवश्य करना चाहिए।
पाप त्याग का उपदेश प्रथम क्यो ? अब उत्तर सुनिये। किसी कपड़े पर अच्छा सुन्दर रंग चढाना हो, तो पहले उसे धोकर साफ करना पड़ता है, अन्यथा उस पर सुन्दर रग नहीं चढ़ सकता । मैले-कुचैले या काले दागोवाले कपड़े पर अच्छा पीला या अच्छा गुलाबी रंग चढ़ाना हो तो चढ़ेगा ? वही बात आत्मा की है। आत्मा अनादिकाल से कर्म-ससर्ग के कारण पाप करता आया है और उसे पाप करने की टेव पड़ गयी है, इसलिए वह पाप करता ही रहता है। अगर उसकी यह पाप-प्रवृत्ति न छूटे तो सत्प्रवृत्ति, सत्क्रियाएँ, कैसे कर सकता है ?
आदत छुड़ाने का काम सहल नहीं है। किसी आदमी को अफीम खाने का व्यसन लग गया हो, तो उसे छुडाने के लिए कैसे-कैसे उपाय करने पड़ते हैं | किसी को चोरी की आदत पड़ गयी हो, तो वह भी बड़ी मुश्किल से छूटती है।
लाली के लक्षण नहीं जाते लाली-नामकी एक लड़की थी। उसे चीज चुराने की आदत पड गयी थी। वह चाहे जहाँ नाती और जो चीज उसे भली लगती उसे चुरा लाती । माँ-बाप ने हर प्रकार से समझाया पर उसकी आदत न छूटी। एक बार कुटुम्ब में विवाह पड़ा । सबको वहाँ जाना था तो उसके माबाप ने कहा--"सब तो विवाह में जायेंगे, पर हम लाली को न ले जायेंगे । वह चुराये बिना न रहेगी और हमारी बदनामी होगी ।" लाली ने वादा किया कि वह कुछ भी न चुरायेगी ।