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सम्यकत्व
६२५ "भाइयो! यह समय आपस में लड़ने का नहीं है । अभी शिकारी आ पहुँचेगा और हम सब पकड़ लिए जायेगे; इसलिए जरा भी वक्त गॅवाये बिना तुम सब एक साथ जोर लगाओ ताकि हम लोग इस जाल को ही लेकर उड़ चलें और अपने प्राण बचालें।" ___ जो काम एक व्यक्ति से नहीं हो सक्ता, वह संघ-समुदाय से हो जाता है। कबूतरों ने अपने नायक की सलाह मानकर मिलकर जोर लगाया, तो जाल की खूटियाँ अखड़ आयी और वे जाल को लेकर आकाश में उड़ गये। ___ यह देखकर शिकारी निराश होकर चला गया । अब लघुपतनक कौआ घटनाक्रम को देखने के लिए कबूतरों के पीछे-पीछे उड़ने लगा।
कुछ दूर जाने पर चित्रग्रीव ने कहा-"भाइयो! हम लोग भय से मुक्त हो गये हैं, अब इस नीचे बहती हुई गडकी नदी के किनारे उतरो । यहाँ हिरण्यक-नामक चूहो का राजा रहता है। वह मेरा मित्र है। वह हमें इस जाल से छुड़ायेगा।' कबूतर नदी के किनारे हिरण्यक के निवासस्थान के पास उतरे।
हिरण्यक ने चित्रग्रीव का और उसके साथियों का अच्छा सत्कार किया और अपने तीक्ष्ण दाँतों से जाल को काट दिया और सब कबूतरो को बन्धनमुक्त कर दिया। कबूतर खुशी-खुशी अपने स्थान को चले गये।
यह देखकर लघुपतनक विचार करने लगा--"यह हिरण्यक बड़ा बुद्धिशाली मालूम होता है । यद्यपि मैं किसी का विश्वास नहीं करता और यथासम्भव किसी से धोखा नहीं खाता, फिर भी इसके साथ मित्रता करनी चाहिए; 'जरूरत के वक्त मित्र मददगार होता है-यह सोचकर वह हिरण्यक के यहाँ आकर कहने लगा-“हे हिरण्यक | मैं ल्धुपतनक-नामक कौआ हूँ, तुम्हारे साथ मित्रता करना चाहता हूँ।"
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