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प्रात्मतत्व-विचार चित्राग ने कहा- "यह बताने का अभी समय नहीं है। तू फौन् हिरण्यक को यहाँ ले आ, ताकि वह मुझे पाग में से छुड़ावे।" ___ लघुपतनक केन्द्र पर वापस आया और हिरण्यक को चोंच में उठाकर ले चला। मथरक भी धीरे-धीरे चलता हुआ वहाँ पहुँच गया। यह देखकर हिरण्यक ने कहा-"भाई मंथरक ! तूने यह ठीक नहीं किया । तुझे अपना स्थान छोड़कर यहाँ नहीं आना था !"
मथरक ने कहा-"मित्र को मुसीबत में पड़ा जानकर मुझसे वहाँ नहीं रहा गया । मैंने सोचा कि, मै भी चलकर यथाशक्य सहायता करूँ। अब जो हो सो हो ।”
हिरण्यक चित्राग का बन्धन जल्दी-जल्दी काटने लगा। इतने में शिकारी आ गया । यह देखकर हिरण्यक पास के बिल में घुस गया; लघुपतनक आकाश में उड़ गया और चित्राग जोर मारकर भाग निकला। रह गया मंथरक | उसे धीरे-धीरे चलता देखकर शिकारी ने कहा-'हिरन तो भाग गया, पर चलो यह कछुवा ही सही!' और, वह कछुवे को पकड़कर डोर से बाँधकर कमान के सिरे पर लटका कर चलने लगा।
तब तीनों मित्र मिले और किसी उपाय से मथरक को बचाने का निर्णय किया। उन्होंने एक योजना बनायी। उसके अनुसार चित्रांग आगे जाकर नदी के किनारे मुर्दा सरीखा बनकर लेट गया और लघुपतनक उसकी ऑखें ठोलने का दिखावा करने लगा ! यह देखकर शिकारी ने कछुवे को जमीन पर फेंका और हिरन को लेने के लिए आगे लपका। उसी समय हिरण्यक ने मंथरक का बन्धन काट दिया और वह नदी के गहरे पानी में सरक गया। उधर चित्राग ने मथरक को मुक्त देखते ही छलांगें मारता हुआ वन में भाग गया। लघुपतनक कॉव-काँव करता हुआ आसमान में उड गया और हिरण्यक पास के बिल मे घुस गया !
शिकारी ने लौटकर देखा तो डोरी कटी पड़ी थी और कछुवा गायब था !