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आत्मतत्व-विचार
विभूपित, उसमें भी एकान्त का योग और फिर स्वय रानी की इच्छा ! ये सब वस्तुएँ सामान्य मनुष्य का पतन करने के लिए काफी हैं; लेकिन वंकचूल ने नियम की रक्षार्थ दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया।
अपनी मांग का इनकार देखकर रानी ने शोर मचाना शुरू कर दिया। देखते-देखते अनेक राजसेवक आ पहुंचे। उन्होने बंकचूल को पकड लिया और सुबह राजा के सामने पेश किया।
कोतवाल ने कहा-"महारान! इस दुष्ट ने राजमहल में दाखिल होकर अन्तःपुर में पहुँचकर रानी साहिबा से छेड़खानी की है; इसलिए इसे उचित द्ड दिया जाये ? इस शिकायत पर प्राणदंड से कम क्या मिलता, पर बंकचूल के प्रवेश के समय राजा नाग गया था और दीवाल के महारे खड़ा होकर सब कुछ देख रहा था ।
राना ने हुक्म किया--"इस चोर को बंधन-मुक्त कर दो।" और, बकचूल से कहा-'तुमने एक महापुरुष जैसा बर्ताव किया है, यह मैने स्वय अपनी आँखों से देखा है । मैं तुम्हें अपना सामंत बनाता हूँ।" __ बंकचूल यह सुनकर दंग रह गया ! जबकि, सर पर मौत मॅडरा रही थी, उस समय सामन्त-पद ! इसे उसने नियमपालन का चमत्कार माना!
धीरे-धीरे बरुचूल राजा का प्रियपात्र बन गया और राजा के चारों हाथ उस पर रहने लगे । एक दिन बंकचूल बीमार पड़ा और वह बीमारी बढ़ती ही चली गयी । बहुत-से उपाय करने पर भी वह मिटी नहीं । अन्त में राजा ने ढिंढोरा पिटवाया कि, जो कोई बंकचूल की बीमारी मिटा देगा उसे बड़ा इनाम मिलेगा! एक वृद्ध वैद्य ने आकार उसे जॉचकर कहा-"अगर इसे कौवे का मास खिलाया जाये, तो यह अच्छा हो जायेगा।"
बंकचूल ने कहा-"जान कल जाती हो तो आज चली जाय, पर मै कौवे का मास हर्गिज नहीं खा सकता।"
गना उसकी नियम-दृढ़ता देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसकी