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श्रात्मतत्व-विचार
दान क्या है ? कितने प्रकार का है ? दान देने की सच्ची रीति क्या है ? शील की पहचान क्या है ? उसके भेद-प्रभेद कितने हैं ? तप का स्वरूप क्या है ? तप की शक्ति कितनी है ? भाव किसे कहते हैं उसकी श्रेष्ठता किसलिए है ? आदि बातें समझने योग्य है; पर वे उचित अवसर पर कही जायेंगी ।
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अपेक्षा विशेष से आचार को धर्म कहा जाता है। वह आचार पाँच प्रकार का है, इसलिए धर्म को भी पॉच प्रकार का माना गया है । वह इस प्रकार -- ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार | इनमें ज्ञानाचार काल, विनय, बहुमान आदि आठ प्रकार का है, दर्शनाचार निःशंकित, निष्काक्षित, निर्विचिकित्स आदि आठ प्रकार का है, चारित्राचार पत्र समिति और तीन गुप्ति के भेद से आठ प्रकार का है; तपाचार वाह्य और अभ्यन्तर तप के भेद से दो प्रकार का है और इनमें से हर एक के छह-छह भेद गिनने पर कुल बारह प्रकार का है, और वीर्याचार मन, वचन और काय बल से तीन प्रकार का है । पाँच इन्द्रियों को और मन को विजय करना ६ प्रकार का धर्म है । जो इन्द्रियो और मन को विजय करता है, उसे अध्यात्म का पूरा प्रसाद प्राप्त होता है और दुर्गति का भय बिलकुल नहीं रहता । इस विषय म जैन शास्त्रों में एक सुन्दर प्रसंग मिलता है ।
केशीकुमार गौतम वार्ता
श्रमण केशीकुमार भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा में अवतरित हुए थे और श्री गौतम भगवान् महावीर के मुख्य शिष्य थे। एक बार इन दोनों महात्माओं का मिलाप हुआ । तब श्रमण केशीकुमार ने पूछा"हे गौतम! आप हजारों वैरियों के बीच में बसे हुए हैं और वे वैरी आप पर आक्रमण कर रहे है, उन्हें आप किस प्रकार जीतते हैं ?"
श्री गौतम ने कहा - " हे महात्मन् । एक को जीतने से पाँच जीत