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धर्म के प्रकार
५६१ "सम्यग्दर्शन ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः" जान देर्शन, चारित्र और तप की आराधना-ये धर्म के चार प्रकार हैं। इनके विषय में शास्त्रों में कहा है कि
नाणं च दंसणं चेव, चारित्तं च तवो तहा।
एवमग्गमणुपत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गडं ॥ ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, इस मार्ग को प्राप्त हुए जीव सद्गति में जाते हैं। ___यहाँ धर्म का यह लक्षण बराबर लागू पड़ता है कि, 'जो दुर्गति में जाने से रोके और सद्गति में ले जाये वह धर्म । नवपदजी के छठे, सातवें, आठवें तथा नवे पदों में धर्म के इन चार प्रकारो का वर्णन है।
दान, शील, तप और भावये धर्म के चार प्रकार हैं। इनके विषय मे शास्त्रों में कहा है कि
दानशीलतपोभाव भेदैर्धर्मश्चतुर्विधः। .
भवाब्धियानपात्राभः प्रोक्तोऽहंद्भिः कृपापरैः ॥ परम कृपालु अहंत् देवों ने संसार सागर को तरने में जहाज-जैसा धर्म दान, शील, तप और भावना भेद से चार प्रकार का कहा है। और, यह भी कहा है कि
दानं च शीलं च तपश्च भावो, धर्मश्चतुर्धा जिनवान्धवेन । निरूपितो यो जगतां हिताय,
स मानसे मे रमतामजस्रम् ॥ -परम कारुणिक जिनेश्वर देवों ने जगत के हित के लिए दान, शील, तप और भाव चार प्रकार का धर्म कहा है, वह मेरे मन में निरन्तर रमे।