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अात्मतत्व-विचार
अतिशय आनन्द हो तो इसमे नयी बात क्या है ? उस घड़े को कोई देख न ले, इसलिए उसने उसे मिट्टी से हॅक दिया और शायट दूसरा बडा भी मिले ऐसी आशा से उसने मिट्टी खोदना चाल रखा । परिश्रम से पसीने से तर हो गया था। सर की पगड़ी भीग न जाये, इसलिए उसने उसे उतार कर एक तरफ रख दी थी।
इधर वह वणिकपुत्र उधर आया कि, कुछ दूर से ही उसे कुम्भार की टाल दिखलायी दे गयी । इससे वह हर्ष के आवेग में आकर बोल उठा कि, 'देख ली । देख ली!'
ये शब्द कुमार के कान में पड़े कि, वह चौंक उठा । उसने बाहर नजर करके देखा तो वणिक पुत्र दिखा । इससे उसके मन मे वहम हुआ कि, जरूर इस छोकरे ने मेरी लक्ष्मी देख ली है और इसीलिए कहता है कि 'देख ली, देख ली।' अब क्या किया जाये ? अगर वह राजा के किसी अधिकारी को खबर दे देगा तो आयी हुई लक्ष्मी चली जायेगी और मुझे दरबार में चक्कर खाने पड़ेंगे वह मुफ्त में ! इससे तो इस लड़के को मना लेना अच्छा । इसलिए उसने पुकार कर कहा-"सेठ ! तुमने देख लिया तो अच्छा किया, पर पास आओ । इसमें मेरा और तुम्हारा आधाआधा हिस्सा ।"
बनिये की जात यानी बड़ी चकोर ! वह इशारे में सब समझ जाती है । यह लड़का धर्म में पिछड़ा हुआ था, पर अक्ल का कुन्द नहीं था । वह बात को फौरन ताड़ गया । इसलिए पास जाकर कहने लगा---'ओझा ! पूरा कौर खाने में मजा नही है। इसमें से कुछ भाग राज्याधिकारी को भी टेंगे तो ही शेष लक्ष्मी हमारे घर में रह सकेगी।' कुमार बोला-"जैसे तुम कहो !” फिर उसने वणिकपुत्र की सलाह के अनुसार किया और दोनों मालदार हो गये।
अब वणिक पुत्र को ऐसा विचार आया कि, मैने तो मजाक में यह छोटा-सा नियम लिया था; फिर भी उसका परिणाम ऐसा सुन्दर हुआ,