________________
धर्म के प्रकार
५६७
आत्मा का स्वभाव 'धर्म' है । आत्मा का मूल स्वभाव ज्ञान, दर्शन, चारित्र है, यह आप जानते ही हैं।
प्रश्न-धर्म की इस नयी व्याख्या से पहली व्याख्या वाधित तो । नहीं होती ? ___ उत्तर-बिलकुल नहीं | आत्मा शुद्ध होता जाता है, इसलिए उसकी दुर्गवि रुकती है और वह अवश्य सद्गति का भागी होता है।
असदनिवृत्ति और सत्प्रवृत्ति ये धर्म के दो प्रकार है। जो मिथ्या है; अनिष्ट है, पापकारी है, कर्मवन्धन पैदा करनेवाला है, वह 'असत्' है। उससे निवृत्त होना, उससे छूटना अर्थात् उसका त्याग करना असनिवृत्ति है। और, जो सत्य है, हितकारी है, श्रेयस्कर है, कर्मबन्धन को काटनेवाला है, वह 'सत्' है। उसमें प्रवृत्ति करना, अर्थात् उसकी आराधना करना सत्प्रवृत्ति है । अठारह पापस्थानकों का त्याग असनिवृत्ति मे आयेगा और सामायिक, प्रभुपूजा, प्रतिक्रमण, पोषध, चारित्रपालन, दान-दया आदिक सत्प्रवृत्ति में आयेगा। . निश्चय और व्यवहार ऐसे दो भेदों से भी धर्म के दो प्रकार होते हैं। इनमें जो निश्चय दृष्टि का अनुसरण करे, वह निश्चय-धर्म और व्यवहार दृष्टि का अनुसरण करे वह व्यवहार-धर्म है। निश्चयदृष्टि तत्वलक्षी होने के कारण आत्मा के शुद्ध स्वरूप को धर्म मानती है और व्यवहारदृष्टि साधनलक्षी होने के कारण आत्मा का साक्षात्कार करानेवाले सब उपायों को धर्म मानती है । यह नहीं समझना चाहिए कि, इनमे एक दृष्टि सच्ची
और दूसरी झूठी है । निश्चय का आधार व्यवहार है और व्यवहार का लक्ष्य निश्चय है। , कुछ कहते हैं कि, 'अमुक ने आज तक अनेक प्रकार की क्रियाएँ की, फिर भी आत्मा का कल्याण नहीं हुआ, इसलिए क्रियाकाडो को छोड़ो और आत्मा को पहचानने का ही प्रयत्न करो!' लेकिन, साधन बिना