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आत्मतत्व-विचार
धर्म की शक्ति अचिन्त्य है धर्म की शक्ति अगाध है, अज्ञेय है, अचिन्त्य है। उसका सेवन करनेवाले को अवश्य लाभ होता है। यह अनुभवगम्य है। अनेक महापुरुषों ने इस वस्तु का अनुभव लेने के बाद ही कहा है कि
सुखार्थ सर्व भूतानां, मताः सर्वप्रवृत्तयः । सुखं नास्ति विना धर्म, तस्माद्धर्मपरो भवेत् ॥
-सब प्राणियों को सब प्रवृत्तियाँ सुख के लिए ही मानी गयी हैं। और वह सुख धर्म बिना नहीं मिलता; इसलिए मनुष्य को धर्म में तत्पर होना चाहिए।
विशेष अवसर पर कहा जायेगा।