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प्रात्मतत्व-विचार अंध-पंगु-न्याय एक नगर में आग लग गयी । सब लोग नगर खाली कर गये; पर एक अंधा और एक लँगड़ा रह गये। अंधा देखता ही नहीं था, कैसे जाता?
और लँगडा तो चलने में ही असमर्थ था। उधर आग कुलाचे मारती हुई आगे बढती आ रही थी और प्रतिपल उन दोनों के निकट आती जा रही थी; पर उन्हें बाहर निकलने का उपाय नहीं सूझ रहा था। लंगड़े को तदबीर सूझ गयी । उसने अधे से कहा--"भाई सूरदास! तू मुझे कधे पर बिठा ले, में तुझे रास्ता दिखाता चलेगा। इस तरह हम दोनो बच जायेंगे।"
अंधे ने यह बात मजूर कर ली। उसने लॅगड़े को अपने कंधो पर बिठा लिया। लॅगडा रास्ता बताता गया। इस तरह दोनों की जान बच गयी। ___ यहाँ अन्धे को जानरहित समझिये। और, पगु को क्रियारहित समझिये ! जैसे अकेला अधा या अकेला लँगड़ा नगर से बाहर नहीं निकल सकते थे, वैसे ही अकेला ज्ञान या अकेली क्रिया मनुष्य को तार नहीं सकती । जब इन दोनों का सयोग होता है, तभी संसार-रूपी प्रज्वलित 'नगर से बाहर निकला जा सकता है। .
पाँच प्रकार के अनुष्ठान क्रिया का अनुष्ठान सब मनुष्य एक ही भाव से नहीं करते; विभिन्न भावों से करते हैं, इसलिए शास्त्रकारों ने उनकी कक्षा समझने के लिए उनके पॉच प्रकार बताये हैं (१) विषानुष्ठान, (२) गरानुष्ठान, (३) अननुष्ठान, (४) तद्धत्वनुष्ठान और (५) अमृतानुष्ठान | अब इनका सामान्य परिचय कर लीजिये।
जो अनुष्ठान विषतुल्य है, वह विषानुष्ठान है । दृष्टि के विकृत होने पर