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श्रात्मतत्व-विचार
मोक्ष प्राप्ति के लिए की जायेगी वह ऊँची है और जो सासारिक सुखभोग की इच्छा से की जायेगी वह नीची है ।
दो आदमी एक सा भोजन करें; लेकिन उनमें से एक शरीर को टिकाने लायक करे ताकि यथाशक्ति धर्माराधन कर सके । और, देह करके विषय भोगने की इच्छा करे तो पहले की क्रिया प्रशस्त दूसरा पुष्ट और दूसरे की अप्रशस्त कही जायेगी। इसलिए, क्रिया करते समय हेतु हमेशा उच्च रखना चाहिए।
गाथा की चार वस्तुओ में तीसरी वस्तु मलरहितता है । मिथ्यात्व आदि दोष अन्तर के मैल हैं । काम, क्रोध, लोभ, मान, मत्सर और हर्ष ये ६ भी अन्तर के मल हैं । जप, तप, ध्यान अन्तर के मैल को दूर करने की खास क्रियाएँ हैं ।
गाथा की चार वस्तुओं में चौथी वस्तु संक्लेषरहितता है । रागद्वेष के परिणाम को संक्लेष कहा जाता है । सक्लेष दूर हो तो समभाव आये और आत्मा अपने मूल स्वभाव का दर्शन कर सके। ऐसों का संसार अत्यन्त अल्प बन जाये, इसमें आश्चर्य क्या ?
महानुभावो ! श्रद्धा, क्रियातत्परता, आतरिक शुद्धि और समता इन चार वस्तुओं द्वारा आत्मा अल्पससारी बनता है और ये चार वस्तुएँ धर्म के आराधन से ही प्राप्त होती हैं ।
विशेष अवसर पर कहा जायेगा !