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आत्मतत्व-विचार
मोह से मूढ हुआ पुरुष अपनी शक्ति का कितना भ्रमपूर्ण उपभोग करता है । तथा सामने प्रत्यक्ष रहने पर भी वह उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होता। ऐसे व्यक्ति को सत्य प्रत्यक्ष ही नहीं होता, जो सत्य ही समझ न पड़े तो फिर धर्म की प्राप्ति कैसे हो ? अब कदाग्रह पर एक दृष्टान्त सुनिये :
कदाग्रह पर अन्धे राजकुमार का दृष्टान्त एक राजा का पुत्र जन्म से अधा था । पर, वह स्वभाव से बड़ा उदार था। वह अपने पास का पैसा याचकों को दान में दे देता | मत्री को यह बात पसद नहीं थी। उसे लगा कि, यह राजकुमार यदि इस प्रकार याचकों को दान देता रहेगा तो नया पैसा आयेगा कहाँ से ?
एक दिन उसने राजा से कहा-"महाराज ! लक्ष्मी का तीन उपयोग है-दान, भोग और नाश ! इन तीनो में दान सर्वश्रेष्ठ है; क्योकि इससे अपना भी हित होता है और पराये का भी हित होता है । पर, यदि यह दान भी मर्यादा में रहे तभी तक भला | अति सर्वत्र वर्जयेत् ! मेरे कहने का तात्पर्य यह कि, राजकुमार यदि इसी रीति से दान देते रहे तो अल्पावधि में ही कोष रिक्त हो जायेगा । ___ राजा ने उत्तर दिया-"मत्रीश्वर । तुम्हारी बात तो ठीक है । पर, मैं कुमार का दिल नहीं दुखाना चाहता । इसलिए, कोई ऐसा उपाय करो कि, कुमार के मन को ठेस भी न लगे और कोष भी न खाली हो।" ___ मत्री ने राजा की बात स्वीकार कर ली और एक उपाय की योजना बनायी। उसने राजकुमार को बुलाकर कहा-"कुमारश्री! आपको आभूषणों का बड़ा शौक है। अतः आपके पूर्वजों के बनवाये आभूषण मैंने कोष से बाहर निकलवाये है। यदि आप यह स्वीकार करें कि, किसी अन्य को न दे देंगे तो उन्हें मे आपको पहनने के लिए दे दूं। इन आभूषणो