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आत्मतत्व-विचार
___ फुरंगी से विदा लेकर सुभट युद्ध में गया । अब फुरंगी अकेली हुई और उसने अपनी चिरकाल की अभिलाषा पूरी करने का निश्चय किया।
इसी गाँव में एक युवक सोनार रहता था। उसका नाम चंगा था। फुरगी की दृष्टि उस पर पड़ी और आभूषण बनवाने के विचार से उसने उसे घर में बुलवाया। थोड़ी इधर-उधर की बात करने के बाद फुरंगी ने कहा-"हमारा-तुम्हारा अच्छा जोड़ा है। दोनों ही रगीले हैं । अतः तुम स्वीकार करो तो हम दोनो ससार-सुख भोगें | यदि तुम मेरी लात स्वीकार न करोगे तो मैं अपघात कर लूंगी और उसका पाप तुम्हें लगेगा।"
चगा में सब दुर्गण थे-शराब पीता, जुआ खेलता, वेश्यागमन करता भौर जहाँ भी सुन्दर स्त्री को देखता फंसाने की चेष्टा करता । यहाँ तो उसे आमत्रण मिला था। कुटिलतावश वह बोला-"व्यभिचार बड़ा पापकर्म है । पर तू तो अपघात की बात करती है, इसलिए मुझे प्रस्ताव स्वीकार है।" फिर दोनों यथेष्ट रूप में भोग भोगने और पैसा उड़ाने लगे।
दिन जाते कितनी देर लगे। चार महीने बीत गये और सुभट का सन्देश आया-"चार दिन में घर आ जाऊँगा ।" अतः अब चगा ने रहीसही सभी चीजें फुरंगी से छीन ली और उसे निर्धन हालत मे छोड़ दिया । फुरगी ने व्यभिचार करके क्या फल पाया ? एक तो उसका सतीत्व गया । दूसरे उसने पति से विश्वासघात किया और तीसरे घर की पूंजी भी गॅवायी । व्यभिचार भयंकर दोष है और उसके सेवन करनेवाले अवश्य नरक प्राप्त करते हैं।
सुभट के आने का समय प्रतिपल निकट आता जाता था। उसका दूसरा सदेशा आया-"कल बारह बजे घर पहुंच रहा हूँ। रसोई आदि तैयार रहे।" रसोई क्या तैयार करती, घर मे कुछ बचा ही नहीं था। अतः वह सुरगी के घर गयी । सुरगी उसे देखकर विचार में पड़ गयी कि, क्या बात है कि आज यह मेरे घर आयी। उसने पूछा तो फिर फुरगी