________________
५५२
श्रात्मतत्व-विचार धर्म फैले हुए है, तो क्या उनमें से हर एक को उत्कृष्ट मंगल-रूप समझें ।' इसका उत्तर 'अहिंसा संजमो तवो' (अहिंसा, संयम और तप) से मिल जाता है । हर धर्म उत्कृष्ट मंगलरूप नहीं है; जिस धर्म में अहिंसा, सयम और तप है, वही उत्कृष्ट मगलरूप है और इसलिए उसी का अनुसरण करना चाहिए। ___ मुमुक्षु के मन में तीसरा प्रश्न यह उठता है कि, 'इम धर्म के पालन करने का फल क्या है ? इसका उत्तर 'देवावि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणों' इन शब्दों में मिल जाता है कि, 'जो ऐसे उत्तम धर्म का पालन करता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। जब देव भी नमस्कार करें, तो मनुष्यों का तो कहना ही क्या ! अर्थात् , वह विश्व-वन्दनीय होकर अपना जन्म सफल कर लेता है।
इससे धर्म की शक्ति और असाधारणता का अनुमान लगाया जा सकता है । पारसमणि लोहे को सोना बना देती है; पर धर्म तो कनिष्ठ मनुष्य को राजराजेश्वर देवाधिदेव बना देता है । सत दृढ़प्रहरी की कथा सुनिए, उससे आपको इस बात की प्रतीति हो जायगी
सन्त दृढ़प्रहारी की कथा ब्राह्मण का एक लड़का था। उसका नाम दुर्धर था । वह बचपन से आवारा लड़कों के साथ मे पड़ गया। वह सारे दिन जुआ खेलता । मातापिता ने उसे बहुत समझाया-"तू जुआ खेलना छोड़ दे। जुए से बड़े. बडे भूपतियों का पतन हो गया तो तू किस बिसात में है ? नुआ आपदाओं का घर है, वह तुझे नष्ट कर देगा।" लेकिन, दुर्धर ने उनका कहना नहीं माना। जब भाग्य दुर्बल होता है, तो किसी के भी हितकर वचन असर नहीं करते।
जुए के लिए पैसे की बारबार जरूरत होने लगी, इसलिए वह चोरी