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प्रात्मतत्व-विचार
गया कि, वह उठ खड़ी हुई और हाथ में लकड़ी लेकर 'हडहड' करती उसके पास गयी और उसे एक लकड़ी लगाया । फिर, लकड़ी को ठिकाने. रखकर कथा सुनने बैठी। ___ पंडितजी ने फिर शुरुआत की-भीष्म उवाच कि, डोसी की नजर रसोई पर पड़ी। वहाँ एक विल्ली चुपके से दूध की तपेली की ओर जा रही थी। यह देखते ही डोसी भड़कने लगी-"यह राँड़ तो सारा दूध पी जायेगी । कोई बराबर ध्यान ही नहीं देता।" फिर, बिल्ली को भगाकर, चीजों को ढॉक₹क कर वापस आकर अपने आसन पर बैठ गयी। ___डोसी थोड़ी देर के लिये स्थिर बैठे तो पंडित जी कथा आगे चलायें । पर, डोसी का चित्त घर मे चारों तरफ घूमता था; इसलिए स्थिर नहीं बैठती थी। तीसरी बार पडितजी ने शुरू किया--भीष्म उवाच-किडोसी ने देखा कि बछड़ा खुल गया है। चढ न आवे इसलिए उठकर बाँधने गयी । खूटे से बाँधकर आयो और फिर कथा सुनने बैठ गयी।
पडितजी को यह बड़ा विचित्र लगता था, पर यजमान से क्या कहे ! उन्होंने चौथी बार कथा बाँचना शुरू किया-'भीष्म उवाचकि डोसी उठ बैठी और हाथ में लकड़ी लेकर छप्पर पर बैठे हुए कौवे को उड़ाने लगी-"यह निगोड़ा 'का-का' करके कथा ही नहीं सुनने देता।"
कौवे को उड़ाकर वह अपने स्थान पर फिर आ गयी और पडितजी की ओर ध्यान देने लगी। पडितजी समझे कि अब कथा ठीक तरह चलेगी, इसलिए वह उत्साह के आवेग मे आकर बोले-'भीष्म उवाच' उसी समय डोसी दरवाजे पर खड़े हुए एक भिखारी को देखकर बड़बड़ाने लगी
और पडितजी की धारणा गलत निकली । डोसी ने भिखारी से कहा"तुझ-जैसे इधर रोज चले आते हैं। कितनो को दिया जाये १ वक्तबेवक्त चले आते हैं ! कथा चल रही कि आन पहुँचा | चल यहाँ से "
इस तरह लगभग एक पहर बीत गया, पर पडितजी, 'भीष्म उवाच'