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आत्मतत्व-विचार
निपानमिव मण्डुकाः, सर: पूर्णमिवाएडजाः।
शुभकर्माणमायान्ति, विवशाः सर्वसम्पदः॥ -~-जैसे भरे तालाब मे मेढक आते हैं और भरे सरोवर पर पक्षी आते है, वैसे ही जहाँ शुभ कर्मों का संचय है; वहाँ सर्व सम्पत्तियाँ विवश होकर आती हैं।
कुछ कहते है-'धर्मबुद्धि रखने से धन नहीं आता । उसके लिए अन्याय, अनीति या पाप का सेवन करना ही पड़ता है। परन्तु, यह कथन भी भ्रमपूर्ण है। इसका उत्तर धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की बात से मिल जायेगा।
धर्मबुद्धि और पापबुद्धि की बात एक नगर में दो बनिये रहते थे। एक का नाम धर्मबुद्धि और दूसरे का नाम पापबुद्धि था। इन दोनों को आँख की पहिचान थी, और प्रसग आने पर एक दूसरे का काम भी करते थे, इसलिए दोनों में मित्रता थी।
धन कमाने के लिए दोनो मित्र परदेश गये। वहाँ बुद्धि और साहस से काम लेकर अच्छी कमाई की । फिर, अपने वतन की ओर लौटे। ___ जब नगर के पास आये तो पापबुद्धि की बुद्धि बदली। वह विचार करने लगा-"अगर किसी तरह इस धर्मबुद्धि का धन उड़ा ले तो एकदम धनवान बन जाऊँ ।" इसके लिए उसने युक्ति लड़ायी । वह धर्मबुद्धि से कहने लगा-"भाई ! इस धन के कमाने में हमें बड़ा पसीना बहाना पड़ा है। अब यह ठीक-ठिकाने न हो जाये इसकी सावधानी रखनी चाहिए। अगर, हम इस तमाम धन को घर ले जायेंगे तो सगे-सबंधी मागे बिना नहीं रहेंगे और हमें गर्म के मारे यह धन देना पडेगा। इसलिए, अच्छा यह है कि, इस धन का अधिकाश हम यहीं पेड़ की जड़ मे दबा दें