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प्रात्मतत्व-विचार ___ धर्म है और बारह व्रतों से विभूपित होकर जीवन-यापन करना विशेष धर्म है।
बारह व्रतों के नाम तो आप जानते ही होंगे। एक बार मैंने एक गृहस्थ से पाँच अणुव्रतों का नाम पूछा तो उसने प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह बता दिया। मैने फिर कहा-“यदि १८ पाप स्थानकों का नाम आता हो तो उसे ही बोलो। इन नामों को उसने झटपट बता दिया। मैंने उससे पहले के पॉच नाम फिर कहने को कहा तो उसने फिर प्राणातिपात आदि नाम कह सुनाये। मैंने उससे पूछा"ये नाम पापस्थानक के हैं या व्रत के ?" तब उसे अपनी भूल का स्मरण आया। और, उसने प्राणातिपात विरमण आदि बताये। मैने फिर कहा-"ये नाम अभी भी अधूरे हैं। ये नाम तो महाव्रतों के हैं, पॉच अणुव्रतो के तो नहीं हैं ?" इस पर बहुत विचार करने के बाद उसने 'स्थूल प्राणातिपात' आदि नाम बताये।
कहने का तात्पर्य कि, आप श्रावकों का जीवन इतने जजालों में व्यस्त हो गया है कि, धर्म पर विचार करने की आप आवश्यकता ही नहीं मानते । आपका कर्तव्य क्या है ? किन व्रतों को आपको धारण करना है और कैसे जीवन बिताना चाहिए, इस संबन्ध में आर विचार ही नहीं करते।
बारह व्रतों के नाम इस प्रकार है :(१) स्थूल प्राणातिपात-विरमण-व्रत । (२) स्थूल मृषावाद-विरमग व्रत । (३) स्थूल अत्तादान-विरमण-व्रत । (४) स्थूल मैथुन-विरमण व्रत । (५) परिग्रह-परिमाण-व्रत । (६) टिक-परिमाण-व्रत ।