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श्रात्मतत्व-विचार
- एरड के चीन की ऊर्ध्वगति होती है, उसी तरह कर्मरूप बन्ध के नष्ट हो जाने से जीव की ऊर्ध्वगति होती है । जीव की स्वाभाविक गति ऊर्ध्व है, इसलिए वह ऊपर जाता है। जिसकी स्वाभाविक गति नीची होती है, वह नीचे जाता है, जैसे कि धूल, ढेला, पत्थर ।
गुणस्थानों का विषय यहाँ पूरा होता है । वह आत्मा के विकास के सम्बन्ध में बहुत कुछ बताता है और कर्म के स्वरूप की भी सूक्ष्म जानकारी देता है ! गुणस्थानों का क्रम समझकर जो आत्मा उत्तरोत्तर ऊँचे गुणस्थानों को प्राप्त करेंगे, वे अनन्त सुख के धामरूप मोक्षमहालय में विराजमान हो सकेगे।
विशेष अवसर पर कहा जायेगा ।