________________
कर्म की निर्जरा
५०६
के आज्ञानुसार ही तप करना चाहिए। गुरु की आज्ञा के विरुद्ध तप करने से विराधकता आती है।
आत्मा को ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना के लिए जैसा पुरुषार्थ करना है, वैसा ही इन बारह प्रकार के तपो के लिए भी करना है, कारण कि, उससे कर्मों की निर्जरा होती है और आत्मशुद्धि प्राप्त होती जाती है। आखिर एक दिन सत्र कर्मों का नाश हो जाता है और आत्मा शुद्ध, बुद्ध, निरंजन बन जाता है।
कर्म की व्याख्यानमाला यहाँ पूरी होती है । अब धर्म के विषय में अवसर पर कहा जायेगा।