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धर्म की आवश्यकता
५२५ फंस जाता है और नष्ट हो जाता है । जिन राष्ट्रो ने पशुवल पर आधार रखा, वे कुछ ही समय में पृथ्वीतल से मिट गये; पर जिन्होने धर्म का सम्मान किया; धर्म को जीवन में उतारा वे विषम-सयोगों में भी टिके रहे । भारतवर्ष पर कम हमले नहीं हुए। अफगान, पठान, मुगल
और अन्त में अग्रेजो ने उसे अनेक प्रकार के आघात पहुँचाये फिर भी वह टिका रहा, कारण कि उसके खून मे धर्म की भावना भरी हुई थी और उसमे सहनशीलता आदि गुण थे ।
अगर धर्म का व्यवस्थित प्रचार हो, तो राष्ट्र कोना रखना छोड़ दें, दूसरो के हकों को मान दें और मत्रको एक मानवकुल की सतान मानकर शातिपूर्वक रहे । विश्व में शाति की स्थापना के लिए धर्म-सुधर्म के सिवाय और कोई उपाय नहीं है !
महानुभावो । आत्मा को कर्म की बला अनादिकाल से लगी हुई है। उसी के कारण जन्म, मरण, आधि, व्याधि, उपाधि आदि अनेक खरावियाँ है । इसलिए, हमे यह कर्म की बला नहीं चाहिए । पर, 'नहीं चाहिए' कहने मात्र से वह चली नहीं जाती।
चूहे कहते हैं कि, विल्ली बिलकुल नहीं चाहिए, तो क्या इससे वह चली जाती है ? उसे दूर करना हो तो कोई उपाय करना चाहिए । एक बार सब चूहों ने मिलकर विचार किया कि, 'बिल्ली ऐसी चुपके-से आती है कि हमें उसकी खबर नहीं होती, इसलिए उसके गले में एक घटी बाँध टेनी चाहिए, ताकि उसके आने पर घटी की आवाज हो और हम सब छिप जाये । सबको यह उपाय बड़ा पसन्द आया, लेकिन बिल्ली के गले मे घटी बाँधने कौन जाये ? यह सवाल खड़ा हुआ, तब सब एक-दूसरे का मुंह देवने लगे और कोई भी आगे न आया । इसलिए, बात जहाँ-की-तहाँ रही और चूहे उसी हालत में अपना जीवन गुजारने लगे। ___ अपनी स्थिति भी वस्तुतः ऐसी ही है। जब कर्म से होनेवाली खराबियो का विचार करते हैं, तो हमारे मन मे यह उत्साह उत्पन्न होता