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धर्म की शक्ति
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भी लाभ नजर आता हो, आप उसे करने में तत्पर हो जाते हैं। इसी दृष्टि से आपको यह बताना है कि, धर्माराधन लाभ का सौदा है-इसमें घाटे की किञ्चित् आशका नहीं है। उसमें क्या-क्या लाभ है, इसे ध्यान से समझने का प्रयास कीजिए।
धर्माजन्म कुले शरीरपटुता सौभाग्यमायुर्वलं, धर्मेणैव भवन्ति निर्मलयशो विद्यार्थसंपत्तयः । कान्ताराच्च महाभयाच्च सततं धर्मः परित्रायते, धर्मः सम्पगुपासितो भवति हि स्वर्गापवर्गप्रदः ॥
-जो धर्म की योग्य आराधना करता है, उसका जन्म उच्च कुल में सरकारी कुल में होता है | जिसका जन्म अधम कुलो मे होता है, वह प्रारम्भ से ही पाप-कर्म करना सीखता है और उसमे लिप्त रहता है । कोली, कसाई, चमार, चोर-डाकू के कुल में जन्म लेनेवालों की दशा देखें तब आप उच्च कुल का मूल्य आँक सकने में समर्थ होंगे।
धर्म के उचित आराधन से पॉचों इन्द्रियों मे पूर्णता प्राप्त होती है। इस लाभ का महत्त्व भी आप ऐसे नहीं आँक सकते। किसी को हाथ न हो, या पाँव न हो या जिह्वा से स्पष्ट उच्चारण न हो सकता हो, कान से बहरा हो या आँख में कोई खराबी हो तो उसे जीवन में कितना कष्ट सहन करना पड़ता है। उनकी तुलना में पाँचों इन्द्रियों में पूर्ण व्यक्ति कितना सुखी गिना जाता है, इसकी आप सहज कल्पना कर सकते हैं।
धर्म की योग्य आराधना से सौभाग्य प्राप्त होता है। सौभाग्य सभी को प्रिय लगता है । आप सब कैवन्ना सेठ के सौभाग्य की बात करते हैं; पर कयवन्ना सेठ को यह सौभाग्य कैसे प्राप्त हुआ था ? इस पर विचार नहीं करते । कयवन्ना को यह सौभाग्य धर्म की आराधना से ही मिला था ।
धर्म की योग्य आराधना से दीर्घ आयुष्य मिलता है। कितने ही माता के गर्भ में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं, कितने ही अल्पावस्था में