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आत्मतत्व-विचार
एक श्रावक को डायबिटिस (पेशाब में शक्कर जाने) का रोग था। उसने कभी तपश्चर्या नहीं की थी, न उससे हो पाती थी। परन्तु, एक बार श्री विजय यगोदेव सूरिजी वहाँ पधारे । उनकी प्रेरणा से उसने अष्टाह्निका का तप शुद्ध धर्म-भावना से पूरा किया । उसके बाद उसका रोग मूल से जाता रह । जो रोग बहुत-सी दवायें करने पर भी न मिटा, वह आठ दिन के धार्मिक अनुष्ठान से मिट गया ! डाक्टर यह देखकर चकित रह गये । उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने उस श्रावक को शक्कर खिलायी; मगर वह उसके पेशाब में बिलकुल नहीं आयी ।
अनाथी मुनि ने स्वयं कहा है-"अनेक विध उपचारों से भी मेरा रोग नहीं मिटा । पर, शुद्ध धार्मिक संकल्प करने से नष्ट हो गया।" ऐसे और भी बहुत-से दृष्टान्त हैं।
मरण-भय से घबराये हुओं को सिवाय धर्म के किसकी शरण है ? उस वक्त माता, पिता, भाई, बहिन, काका, काकी, मामा, मामी या कोई सगा-सम्बन्धी शरण नहीं दे सकता । बड़े-बड़े धनिकों या अधिकारियों से मेल-मुलाकात हो तो भी उस वक्त वह काम नहीं आती। मौत के वारंट के आने पर धर्म ही एक शरण है । किसी का जवान पुत्र मर गया हो। या पत्नी का अकाल अवसान हो गया हो य 1बुजुर्ग चले गये हों, अथवा व्यापार-धधा चौपट हो गया हो या उसनें बड़ा नुकसान आया हो; उस वक्त मनुष्य शोकातुर हो जाता है। उस वक्त धर्म का आराधन ही उसके शोक को दूर कर सकता है। ___इस तरह जगत् में दुःखी जनों के लिए मात्र धर्म ही नित्य शरणभूत है । धर्म की यह कैसी महान शक्ति है !
धर्म से होनेवाले अनेक लाभ महानुभावो ! आप व्यापार-वाणिज्य करनेवाले पक्के बनियाँ हैं। हर चीज में आपकी दृष्टि लाभ पर ही रहती है। जिसमें आपको थोड़ा