________________
५३४
आत्मतत्व-विचार
बन्दरों के इन विचारों को सुनकर बूढे बन्दर को लगा कि इनमें से कोई भी गभीरता से विचार करनेवाला नहीं है; इसलिए सारी बातें खोलकर बताना फिजूल है । उसने सक्षेप मे इतना ही कहा- "मैंने इस बारे में पूरा विचार किया है। अगर आपको मानना हो तो मानिये।"
एक बन्दर ने कहा-"यह बात बड़ी गभीर है, इसलिए एक के मतानुसार नहीं चला जा सकता। इसके लिए सब बन्दरों के मत लो।"
सब बन्दरों के मत लिये गये । बूढ़े बन्दर की बात का किसी ने समर्थन नहीं किया । और, एकमत विरुद्ध प्रबल बहुमत से निर्णय किया गया-- "हम जिस तरह राजमहल में रहते हैं, उसी तरह रहना चाल रखें।" ____ अपने भाइयों की यह हालत देखकर बूढे बन्दर को बहुत दुःख हुआ
और वह अकेला राजमहल छोडकर वन में चला गया। सब उसे मूर्ख मानकर हँसने लगे।
कुछ दिनों बाद वही हुआ, जो बूढे बन्दर ने सोचा था । रसोइये ने घंटे को जलती लकड़ी मारी और घंटा जल उठा । वह चोखता-चिल्लाता पास की अश्वशाला में घुसा और जमीन पर लोटने लगा। वहाँ जमीन पर पड़ी हुई घास जल उठी और पास में भरी हुई घास मे भी आग लग गयी । देखते-देखते अश्वशाला जलने लगी और उस आग मे कितने ही घोड़े मर गये और कई सख्त जख्मी हुए। राजा ने पशुचिकित्सक को बुलाकर झुलसे हुए घोड़ो का इलाज पूछा । जवाब मिला--"बन्दरों की ताजी चर्बी लगाई जाये, तो ये घोड़े अच्छे हो जायें ।" ।
राजा ने कहा-"यह तो आसानी से हो सकता है। हमारे महल में ही बन्दरों का एक टोला पाला हुआ है।” राजा का हुक्म पाकर राजसेवकों ने बन्दरो को मारकर उनकी ताजी चर्बी का उपयोग किया ।
व्यवहार में भी बहुत-सी बातें ऐसी हैं कि, जिनमें बहुमत का उपयोग नहीं हो सकता । घर में बहुत-से लोगों के होते हुए भी बुजुर्गों का कहना