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धर्म की आवश्यकता भव में नहीं तोड़ोगे तो दूसरे, तीसरे, पाँचवें, दसवें, सौवें या हजारवें भव में उसे तोड़ना ही पड़ेगा। तो फिर आज ही क्यों नहीं ?
आप अगर यह मानते हों कि, 'आगे कोई अच्छा मौका आयेगा तब कर्मों को तोड़ डालेंगे और उनका फैसला कर डालेंगे, तो इससे अच्छा मौका आपके पास कौन-सा आनेवाला है ? अनन्तानत भवभ्रमण करते हुए मनुष्य-भव प्राप्त हुआ है। यह क्मों को तोड़ने का बड़ा से बड़ा मौका है । जिन-जिन आत्माओं ने कर्मों के साथ घमासान युद्ध करके उनका नाश किया, मनुष्य-भव मे ही किया । भविष्य में भी जो जो आत्मा कर्मों का सम्पूर्ण नाश करनेवाले हैं, वे मनुष्य-भव में ही करनेवाले हैं। आप स्वर्ग का सुख चाहते हैं, ( कोई विमान या रॉकेट स्वर्ग में ले जाये तो सबसे पहले जाने को तैयार हो जायें !), पर देव स्वयं मनुष्य-जन्म चाहते हैं, ताकि कर्मों को भस्म करके उनका अन्त ला सकें। ___ महानुभावो ! ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलता, इसलिए उठिये, खड़े हो जाइये और कर्मनाश का प्रशस्त पुरुपार्थ कीजिये । कर्मों को नष्ट करने का प्रशस्त पुरुषार्थ ही धर्म का आराधन है।
विशेष अवसर पर कहा जायेगा।
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