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धर्म की आवश्यकता
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तुम मुझे आश्रय दो । मैं तुम्हारा उपकार आजीवन मानूँगा । एक ही रात ठहर कर मैं स्वतः चला जाऊँगा ।" जूँ बोली - " भाई ! तुम्हें आश्रय देने में कोई बाधा नहीं है, पर तुम्हारा स्वभाव अति चपल है ।" मकड़े ने कहा - "मेरा स्वभाव तो निश्चय ही चपल है, पर तुम्हारे पास रहकर भला मै क्या पता दिखाऊँगा ? तुम निश्चिन्त रहो, मै किसी प्रकार का तूफान नहीं करनेवाला हूँ ।"
जूँ भली थी । अतः उसने माँकड़े के वचन पर विश्वास करके आश्रय दे दिया और मकड़ा भी वहीं एक ओर ठहर गया । रात होने पर राजा पलग पर लेटा । उसके रक्त के गन्ध से मकड़े का नो उछलने लगा । पलंग के साधे से बाहर निकल कर वह राजा को काटने की तैयारी करने लगा | वह यह भूल गया कि, जॅ से उसने क्या वादा किया है । दुष्ट को भला वचन का क्या मूल्य ? स्वार्थ सघता हो तो दुष्ट कुछ भी वचन दे सकता है, पर उसका पालन तो दूर की बात है ? 'तुम्हारी गाय हॅू, मुझे छोड़ दो। तुम्हारे देश में फिर न आऊँगा,' कहकर मुहम्मद गोरी ६ बार पृथ्वीराज के हाथ से निकल गया। पर, सातवीं बार उसने चढायी की और पृथ्वीराज को हराकर कैद कर ले गया ।
अस्तु ! मकड़ा निकला और उसने राजा का मीठा रक्त चखा । राजा को नींद नहीं आयी थी अतः मकडे के काटते ही वह उठ बैठा । और पलग मे यत्र तत्र देखने लगा । इतने में सेवक वहाँ आ पहुँचे और पूछने लगे - " महाराज क्या बात है ?” राजा ने कहा - " इस चादर मे लगता है मकडा है ।" अतः लोग मकड़े को देखने लो ।
मकड़ा तो अपने स्वभाव के अनुसार रक्त पीकर रफूचक्कर हो गया था । सेवकों के हाथ में भला कैसे आने लगा १ पर, जूँ तो चादर की साँध में छिप कर बैठी ही थी। नौकरों के हाथ में आ गयी । सेवकों ने सोचा कि, उसीने राजा को काटा। उन लोगों ने जूँ को बाद में राजा फिर पलंग पर लेटा । इस बार उसे नींद आने
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मार डाला ।
लगी ।