________________
५२८
आत्मतत्व-विचार
दुष्ट मकड़े को एक रात के लिए आश्रय देने के ही कारण बिचारी जू को अपने प्राण से हाथ धोना पड़ा। पर, आपने तो दीर्घकाल से दुष्ट कर्मों को आश्रय दे रखा है, फिर आपका क्या होनेवाला है, यह आप स्वय समझ सकते है ।
आप कहेंगे-"यह मै जानता है। इसका विपद परिणाम हमें भोगना पड़ेगा।" पर, ये शब्द तो आपके होटों से निकलते हैं— हृदय से नहीं - निकलते ! यदि हृदय मे निलकते तो स्थिति भिन्न होती । आप शान्त होकर
बैठे न रहते | यदि आप सडक से चले जा रहे हों और कोई चिल्लाये 'सॉप-सॉप !' तो आप क्या करेंगे? चलते ही जायेगे या रास्ता बदलेंगे ! वगल में आग लगी हो और घटे आध घटे में उसकी लपटें आपका घर पकड़नेवाली हो तो आप क्या करेंगे ? पलग पर लेटे-लेटे करवटें बदलेंगे या भागेंगे?
___ सन् १९४२ की बात आप भूले न होगे ? सिगापुर का पतन हो चुका था और हवा थी कि, अब बम्बई पर बम पड़ने ही वाला है । हजारो रुपये का घर-बार बेचकर लोग बोरिया-बिस्तर लिए स्टेशन की
ओर भागे जा रहे थे । ६-६-८-८ घटा ट्रेन का वक्त देखते लोग बेठे रहते । उस समय लोगों मे अपार घबराहट थी कि, कब ट्रेन में बैठे और देश पहुँच जायें।
तो आप सॉप से बचने के लिए, आग से बचने के लिए इतनी जहमत उठाते हैं तो फिर इनकी अपेक्षा अनेक गुना भयंकर कर्म के लिए कितनी जहमत की आवश्यकता है ? परन्तु, आप तो सुस्त और चुपचाप वैठे हैं-यह बड़ी खेदजनक स्थिति है। पुरुषार्य करने से ही मुंह मोड लेने पर भला कर्म की सत्ता कैसे टूटेगी ? ____ 'कर्म कटने होगे तो कट जायेंग' ऐसा मानकर बैठे रहोगे तो खता खाओगे । वे अपने आप कमी नहीं कटनेवाले है । कर्म की जजीरो को इस