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श्रात्मतत्व-विचार
पीड़ित है और तुम यहाँ पारणा करने बैट गये! तुम्हें अपनी प्रतिज्ञा का भी ध्यान है "
ये शल सुनते ही नटिपेण मुनि ने परणा स्थगित कर दी और शुद्ध पानी लाकर वे नगर के बाहर मुनि वाली जगह पर आये। उन्हें देखते ही वह बूढा साधु तदक कर बोला-"अरे अधम ! म यहाँ ऐसी अवस्था में पड़ा हूँ और त अटपट पारणा करने बैट गया। तेग वैयावृत्त की प्रतिज्ञा को धिक्कार है !"
आप सेवामदलों की स्थापना करते है और मेवा करने की प्रतिमा लेते है, पर अगर कोई टो शब्द कह दे तो क्तिने गर्म हो जाते है'तुम्हारे बाप के नौकर नहीं है। एक तो मुफ्त काम करते है और ऊपर से ऐसे गद मुनाते हो। अब हमे उम मंटल में नहीं रहना है। हम अभी स्तीफा देते हैं।' एमा कहकर आप न्यागपत्र में देते है, पर नटिषेण मुनि आकोगपूर्ण शन्द मुनकर अपने सेवाग्रत को त्याग टनेवाले नहीं थे। उन्होंने क्षमा, नम्रता, सरलता, निर्लोभ, शौच, सन्तोष, दया आदि गुण जीवन में अच्छी तरह उतारे थे इसलिए गाति मे बोले -- "हे मुनिवर | आप मेरे अपराध को क्षमा करें । अब में आपको थोड़ी ही देर में तैयार कर दूंगा | मैं अपने साथ शुद्ध पानी लेता आया हूँ।'
फिर उस मुनि को पानी पिलाया और उसके कपड़े, शरीर आदि साफ करके बैठने के लिए पृछा । वह मुनि फिर भड़क कर बोला- "अरे मूर्ख ! तृ देखता नहीं कि, मैं कितना अशक्त हूँ ? इस हालत में बैठ कैसे सकता हूँ?
नटिपेण मुनि ने ये शब्द भी गाति से सुन लिये और बोले-"मैं आपको अभी बिठाये देता हूँ !” उसे धीमे से बिठाया और विनयपूर्वफ कहा-“हे मुनिवर । अगर आपकी इच्छा हो तो मैं आपको नगर में ले चलें । वहाँ आपको अधिक साता रहेगी।"