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आत्मतत्व-विचार
कहने लगा- "हे मुनि ! आप धन्य हैं ! आ। मानवकुल की शोभा है | इन्द्र ने आपका जैसा वर्णन किया था, आप वैसे ही हैं। इससे मै भी प्रसन्न हुआ हूँ। आप जो मागे सो देने को तैयार हूँ।"
कोई देव प्रसन्न होकर आपसे मांगने को कहे तो आप क्या मागे? एक अविवाहित अधे बनिये से किसी देव ने प्रसन्न होकर कहा था कि 'तूं कोई एक वन्तु मॉगले ।' तब उसने मॉगा कि, 'मेरे मॅझले लड़के की बहू सातवीं मजिल पर सोने की मथानी मे छाछ करती हो यह मै रत्ननटित हिंडोला से बैठा हुआ नजर से देख सकें।' इससे उसने कितना मागलिया | 'मझले लड़के की बहू' यानी कम से कम तीन पुत्र और वे सब विवाहित । शादी के बगैर पुत्र हो नहीं, इसलिए इसमे उसकी शादी भी आ गयी । 'सातवीं मंजिल पर सोने की मथानी मे छाछ करती हो' यानी सात मजिल की हवेली और उसमे उच्चतम जाति का साजोसामान-उसके बगैर सोने की मथानी कैसे हो सकती है ? फिर 'रत्ननटित हिडोले पर बैठा-बैठा नजर से देख सकें' यानी अपार वैभव और अपने अधेपन का दूर हो जाना । इसमें दीर्घ आयुष्य भी आ गया, कारण कि उसके विना तीन पुत्र योग्य उम्र के होकर विवाहित हो नहीं सकते । आप शायद इससे भी ज्यादा मागे, पर कम नहीं !
यहाँ नदिपेग ‘मुनि ने क्या जवाब दिया सो सुनिये-'हे देव ! महादुर्लभ धर्म मैंने प्राप्त किया है। उससे बढ़कर इस नगत् में कौन-सी चीज अच्छी है कि, आपमे मागू ? मैं अपनी स्थिति में सन्तुष्ट हूँ। मुझे किसी चीज की अपेक्षा नहीं है।"
नदिप्रेश मुनि की ऐसी निस्पृहता देखकर देव का मस्तक फिर उनके प्रति झुक गया और वह मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा करता हुआ अपने स्थान पर चला गया।
हमारे इस उत्तर से उस युवक के मन का समावान हुआ और वह जीवन में धर्म की आवश्यकता मानने लगा।