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कर्म की निर्जरा
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के आज्ञानुसार ही तप करना चाहिए। गुरु की आजा के विरुद्ध तप करने से विराधकता आती है। ___ आत्मा को ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना के लिए जैसा पुरुषार्थ करना है, वैसा ही इन बारह प्रकार के तपो के लिए भी करना है, कारण कि, उससे कर्मों की निर्जरा होती है और आत्मशुद्धि प्राप्त होती जाती है। आखिर एक दिन सब कमों का नाश हो जाता है और आत्मा शुद्ध, बुद्ध, निरजन बन जाता है।
कर्म की व्याख्यानमाला यहाँ पूरी होती है । अत्र धर्म के विषय में अवसर पर कहा जायेगा ।