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गुणस्थान
४७६ जाने पर ज्ञान दमक उठता है । इन वचनों से प्रतिबोध पाकर अमात्य तेतलिपुत्र ने ससार छोड़कर संयत दशा अपनी ली । तभी उसे जातिस्मरण
ज्ञान हुआ । पूर्व जन्म में पढ़े हुए चौदह पूर्व स्मरण हो गये। राजा आदि -- के दिमाग ठिकाने आ गये। सब वन्दना करने आये। तेतलिपुत्र मुनि ने
ज्ञान, ध्यान, तप, जप द्वारा संयत दशा को अत्यन्त उज्ज्वल किया और
अन्त मे सफल कर्मों का क्षय करके वे केवलजान, प्राप्त करके सिद्ध, बुद्ध, निरजन हुए।
महानुभावो! छठे गुणस्थान में इतना बल है, इसलिए सब सुज्ञ जन उसकी इच्छा करते हैं।
इस गुणस्थान की जघन्य स्थिति एक समय और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त है; परन्तु प्रमत्त अप्रमत्त मिलाकर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्व, यानी एक करोड़ पूर्व में आठ वर्ष कम, होती है।
(७) अप्रमत्त सयत गुणस्थान सज्वलन कषायों का उदय मन्द होने पर साधु प्रमादरहित होकर अप्रमत्त हो जाता है। उसकी अवस्थाविशेष को 'अप्रमत्त स यत-गुणस्थान' कहा जाता है। इस अवस्था का आत्मा किञ्चित् मात्र प्रमाद करते ही छठे गुणस्थान में आ जाता है और प्रमादरहित होने पर पुनः सातवें गुणस्थान में आ जाता है। इस तरह छठे और सातवें गुणस्थान का परिवर्तन सामान्यतः दीर्घकाल तक चलता रहता है।
इस गुणस्थान की जघन्य स्थिति एक समय और उत्कृष्ट स्थिति अन्तमुहूर्त होती है। __ यहाँ यह ज्ञातव्य है कि, छठे और सातवें गुणस्थान के सयत जीव धर्मध्यान का विशेष आश्रय लेते हैं और इसलिए विशेष आत्मशुद्धि कर सकते हैं।