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आत्मतत्व-विचार
उस ब्राह्मणको दो माशे सोना दक्षिणा में देता है, जो सुबह-सुबह उसे आशीर्वाद दे। इसलिए उसने सोचा-"सुबह जल्दी जाकर आशीर्वाद देकर दक्षिणा लाकर अपना काम चलाया जाये।"
दूसरे दिन कपिल सुबह उठकर वहाँ गया। तब तक वहाँ कोई ब्राह्मण आकर आशीर्वाद दे गया था और दक्षिणा ले गया था। कपिल ने तीसरे दिन प्रयत्न किया, लेकिन उस रोज भी सफलता नहीं मिली । इस तरह लगातार वह आठ दिन गया; पर कोई न-कोई जल्दी आकर आशीर्वाद दे जाता था। इससे कपिल थक गया और उसने बहुत-ही सबेरे उठकर पहुँचने और आशीर्वाद देने का निर्णय किया ।
मनुष्य के मन में जब कोई धुन सवार हो जाती है, तब वह आगेपीछे का विचार नहीं करता। वह उठा और, इस ख्याल से कि कोई और ब्राह्मण पहले न पहुँच जाये, दौड़ने लगा । अभी तो रात का चौथा पहर भी शुरू नहीं हुआ था, लोगो का आना-जाना बिलकुल बन्द था, कुछ चौकीदार इधर-उधर गश्त लगा रहे थे। उन्होने कपिल को दौडता देखा, इसलिए उसे चोर समझकर पकड़ लिया। और, चौकी पर बिठा लिया । कपिल ने अपनी बात समझानी चाही, पर उन्होने एक न सुनी । सिर्फ एक ही जवाब दिया--"सुबह महाराजा के सामने पेश किये जाने पर जो जवाब देना हो सो देना । इस वक्त ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं है।"
सुबह होने पर उसे राजा के सामने पेश किया गया। कपिल को राजदरबार में आने का यह पहला ही प्रसग था और तिस पर वह अपराधी बनकर आया था, इसलिए डर से थरथर काँपने लगा। राजा को लगा कि, यह वास्तव मे चोर नहीं है। उसने पूछा- "तू जाति का कौन है ? और रात मे रास्ते पर क्यों दौड़ता था ?"
फपिल ने कहा---'महाराज | मैं जाति का ब्राह्मण हूँ और आशीर्वाद देकर दक्षिणा लेने आ रहा था।"