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गुणस्थान
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राजा ने पूछा - " पर इतनी रात मे ?"
कपिल ने कहा - " महाराज । आठ दिन से जल्दी पहुॅचने का प्रयास कर रहा था कि, आशीर्वाद देकर दो माशा सोना प्राप्त करूँ, पर वह मेरे भाग्य में लिखा हुआ नहीं था । उसका लाभ लेने के सवेरे उठा और इस ख्याल से कि कोई और जल्दी न लगा । उसी से यह दुर्दशा हुई ।"
लिए आज बहुत पहुँच जाये; दौड़ने
राजा ने कहा- "मुझे आशीर्वाद देने के लिये तुमने इतनी तकलीफ उठायी और वह भी सिर्फ दो माशा सोने के लिए ! इससे मैं तुम्हारी हालत को अच्छी तरह समझ सकता हूँ । हे भूदेव । मैं तुम पर प्रसन्न होकर कहता हूँ कि, तुम्हें जो माँगना हो माँगो, मै तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी करूँगा ।"
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संकट के बादल छिन्न-भिन्न हो गये थे । मन चाही चीज माँगने के लिए कहा गया था, इसलिए कपिल स्वस्थ हुआ, कुछ आनन्द मे आकर बोला - "महाराज ! कुछ समय दें तो विचार कर माँगूँ ।"
राजा ने कहा- 'भले, विचार कर माँगना ।"
अत्र कपिल विचार करने लगा - 'क्या माँगें ? दो माशा सोने मे तो कुछ नहीं होगा, इसलिए दस अशर्फी माँगें । पर, दस अशर्फियो मै भी क्या होगा ? इसलिए पचास अशर्फी माँगने दो।' फिर विचार आया कि 'पचास अशर्फी कुछ ज्यादा नहीं है । वह तो कुछ ही दिनों में खत्म हो जायेगी, इसलिए पाँच सौ अशर्फी माँगने दो । राजा के खजाने मे क्या कमी आ जानेवाली है !"
इस तरह उसका ' लोभ गुन्नारे की तरह फूलने लगा ।
कपिल पॉच सौ से हजार पर, हजार से दस हजार पर, लाख पर और लाख से करोड़ अशर्फियो पर आ गया । आया कि करोड़पति से भी सामान्य सत्ताधीश बढकर होता है, इसलिए
दस हजार से फिर विचार