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श्रात्मतत्व-विचार
वह भी निष्प्रभाव रहा ! इससे वह बहुत व्याकुल हुआ और नगर के बाहर चला गया । वहाँ एक वृक्ष से रस्सी बॉधकर फॉसी लगायी पर रस्सी टूट गयी और वह उससे भी बच गया ।
इन उपायों के असफल हो जाने पर अमात्य ने डूब कर मरने का 'विचार किया । वह एक शिला बॉधकर जलाशय में कूद पड़ा, पर वह डूबा नहीं, नाव की तरह तैरता रहा !
फिर उसने चिता जलाकर उसमें प्रवेश किया। पर, अकाल वृष्टि हुई और चिता बुझ गयी !
मरने के अनेक उपायों के निष्फल जाने पर, वह हताश होकर चिल्लाने लगा—“अब मैं किसकी शरण जाऊँ, मौत तक मेरा दुःख मिटाने के लिए तैयार नहीं है !"
उसो समय पोट्टिलदेव अंतरिक्ष से बोला - "हे तेतली पुत्र ! आगे गहरा गड्ढा है, पीछे उन्मत्त हाथी चला आ रहा है, चौतरफ घोर अन्धकार है, बीच में वाण-वर्षा हो रही है, गॉव जल रहा है और रण धगधगा रहा है, ऐसे मे कहाँ जाये ?”
तेतलिपुत्र इस प्रश्न का मर्म समझ गया और उत्तर मे बोला -- "जैसे भूखे का शरण भन्न है, प्यासे का कारण जल है, रोग का शरण औषध है और थके हुए की शरण वाहन है, वैसे ही चौतरफ से भयभीत हुए मनुष्यों की शरण प्रव्रज्या है । प्रव्रजित हुए गात, दात और जितेन्द्रिय को कोई भय नहीं होता । "
तभी अतरिक्ष से आवाज आयी - " जब तू यह बात समझता है, तो प्रव्रज्या की शरण क्यों नहीं लेता ?" उसके सामने प्रकाश का एक पुन आकर खड़ा हो गया । उसने कहा - " मैं तुम्हारी स्त्री पोहिला हॅ और तुमसे कहने आयी हूँ कि, ससार का यह सब रंग-ढंग देखकर अत्र चारित्र धारण करो ।"
जैसे राख हट जाने पर अंगार दहक उठता है, वैसे ही मोह के हट