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गुणस्थान
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ध्यान प्राप्त होता है। उसमें श्वासोच्छवास-जैसी सूक्ष्म क्रिया ही बाकी रहती है और उससे गिरना नहीं होता, इसलिए वह सूक्ष्म क्रियाऽप्रतिपाती कहलाता है।
शुक्ल ध्यान की चौथी मजिल या प्रकार है, समुच्छिन्न क्रियाऽनिवृत्ति । जब सर्वज्ञता प्राप्त आत्मा की श्वास-प्रश्वास आदि सूक्ष्म क्रिया भी बन्द हो जाती है और आत्मप्रदेश सर्वथा निष्कम्प हो जाते है, तब यह ध्यान प्राप्त होता है। इस ध्यान मे सूक्ष्म योगात्मक यानी सूक्ष्म कामयोग रूप क्रिया भी सर्वथा समुच्छिन्न हो जाती है और उसकी अनिवृत्ति होती है।
आठवें, नौवें, दसवें तथा ग्यारहवें गुणस्थानक का समय जघन्य रूप से एक समय और उत्कृष्ट रूप से अन्तर्मुहूर्त होता है। .
विशेष अवसर पर कहा जायगा ।