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यात्मनत्व-विचार
गम्याय पाकर मिथ्यात्वी हो गये। उनके मिथ्यात्व का अन्त आनेवाला हलिए, टनका मिथ्यात्व सादि-सांत है। ये सब नीव पहल इस गुणम्यान में होने हैं।
(२) सास्वादन-सम्यग्दृष्टि-गुणस्थान जब जीव की मिथ्यात्व नहीं होता और सम्यक्त्व भी नहीं होता, पर, सम्यक्त्व का कुछ स्वाट होता है; तब उन मास्वादन-सम्यग्दृष्टि नामक दूसरे गुणस्थान में माना नाता है। मास्वादन यानी कुछ स्वाद-सहित । सास्वादन म तीन पद है-स+या+स्वादन । इनमे 'म' का अर्थ 'सहित है, 'आ' का बर्थ किंचित है और 'स्वादन' का अर्थ 'स्वाद है। इस तरह साम्बादन का बये 'कुछ स्वाद महित' होता है।
यात्मा की एमी अवस्था कम होती है, हमें भी समझ लीजिए । मसारी जीव अनन्त पुद्गल परावर्तन काल तक मिथ्यात्व में पड़ा हुया मव भ्रमण करता रहता है। नदी का पत्थर टूटता और रगड़ खाता हुथा यंत मं गोल बन जाता है, उसी तरह यह नीव बनायोग-रूपसे प्रवृनि करता हुया, जब भायुष्य-कर्म के अतिरिक्त माता कमों की स्थिति एककोडाफोदी-मागगेपम में पत्यापम का अमरठ्यातवॉ-माग कम की कर लेता है, नत्र बह राग-द्रंप के अति निविद परिणाम-रूप अन्थि-प्रदेश के समीप आता है। अमव्य नीव मी दम तरह कर्मस्थिति हलकी करके, अनन्तो बार अन्थि के समीप आते हैं, पर वे उस ग्रन्थि का मंद नहीं कर सकते; पर्वाक भव्य जीव विशुद्ध परिणामों की कुल्हाड़ी से उस ग्रन्थि को तोड़ टालते हैं धीर गम्यक्त्व के सम्मुग्व पहुंच जाते है।
चाय की उन्नति के इम इतिहास को शास्त्रमागे ने तीन करणों में बाँटा । (१) यथाप्रवृत्तिकरण, (२) अपूर्वकरण और (३) अनिवृनिकरण | एक गाथा