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गुणस्थान
४५६ डाली। उन्होने इससे पहले बहुत से, ब्राह्मण, श्रमण और परिव्राजक देखे थे; अनेक परिव्राजको का परिचय भी प्राप्त किया था, पर उनमे से किसी ने उन मुनिवर-जैसी छाप दिल पर नहीं डाली थी। ____ मगधराज स्वाभाविक रूप में ही उनके प्रति नतमस्तक हो गये। उन्होंने तीन बार प्रदक्षिणा करके उन मुनिराज के प्रति अपना भक्तिभाव प्रकट किया और दोनों हाथ जोड़कर उचित दूरी पर मुनिवर के सामने खड़े हो गये।
कुछ देर में मुनिवर का ध्यान पूरा हुआ और उन्होंने अपने नेत्र-कमलखोले । उन्होंने श्रेणिक को सामने खड़ा देखा, इसलिए उन्होने साधु-धर्म के योग्य 'धर्मलाभ' कहा।
मगधराज ने अपना मस्तक नमा कर कृतज्ञता प्रकट की। फिर विनयपूर्वक पूछा-'"हे मुनिवर । अगर आपकी साधना में किसी प्रकार का विघ्न न आता हो तो मैं एक बात पूछना चाहता हूँ?" . — मुनिवर ने कहा-"राजन् ! बात दो प्रकार की होती है-एक सदोष
और दूसरी निर्दोष । भुक्त-कथा, स्त्री-कथा, देश-कथा और राज-कथा मदोष वाते हैं। ऐसी बातो में मुनि नहीं पड़ते। लेकिन, जिस बात से जान की वृद्धि हो, श्रद्धा की पुष्टि हो, सदाचार का विकास हो, वैसी बात निर्दोष है। ऐसी बातें मुनियो की- साधना में बाधक नहीं होती। इतना लक्ष्य में रखकर तुम्हें जो कहना हो कहो।"
मगधराज ने कहा- "हे पूज्य ! मैं यही जानना चाहता हूँ कि, ऐसी तरुण अवस्था में भोग भोगने के बजाय आपने सयम का मार्ग क्यो ग्रहण किया ? “ऐसा क्या प्रबल प्रयोजन था, जो आपको इस त्याग-मार्ग की तरफ खींच लाया ?" ___मुनिराज ने कहा-'हे राजन् ! मैं अनाथ था, मेरा कोई नाथ नहीं था, इसलिए मैने यह सयम मार्ग ग्रहण किया है।" ,